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________________ तर्कभाषा इन्होंने नव्य न्याय की शैली में ही लिखी है। इनके पश्चात् दिगम्बर परम्परा में विमलदास ने सप्तभंगीतरंगिणी इस शैली में लिखी है। इन दो ग्रन्थों के अतिरिक्त अन्य कोई जैन ग्रन्थ नव्य न्याय की शैली में लिखा गया हो यह मेरी जानकारी में नहीं है । आधुनिकयुग आधुनिक युग का काल 20 वीं शती माना जाता है। इस कालखण्ड श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों परम्पराओं में अनेक जैन चिन्तक हुए हैं, जिन्होंने उदार वैज्ञानिकदृष्टि से एवं ऐतिहासिक विकासक्रम को ध्यान में रखकर जैनदर्शन सम्बन्धी लेखन किया है। इनमें आदिनाथ नेमीनाथ उपाध्ये, पं. नाथुरामजी प्रेमी, प्रो. हीरालालजी, पं. सुखलालजी, पं. बेचरदासजी दोषी, पं. दलसुख मालवणिया, प्रो. नथमल टाटिया, प्रो. मधुसूदन ढाकी आदि प्रमुख है । यद्यपि इसी कालखण्डक में कुछ परम्परागत शैली का अनुसरण करने वाले विद्वान भी हुए है, जिन्होने अपने लेखन एवं मूल ग्रन्थों के अनुवाद आदि के माध्यम से भारतीय दर्शन को समृद्ध किया है। जैसेपं. महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य पं. हीरालालजी, पं. कैलाशचंदजी, पं. फूलचंदजी, पं. दरबारीलालजी कोठिया आदि प्रमुख है । जहाँ तक इन वर्गो का प्रश्न है- प्रथम वर्ग ने तुलनात्मक अध्ययन और निष्पक्ष समीक्षात्मक दृष्टि से जैन एवं जैनेतर दार्शनिक चिन्तन को तुलनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत कर भारतीय दर्शन की सेवा की है। वही दूसरे वर्ग ने मौलिक ग्रन्थों के अनुवाद से साथ-साथ अपनी भूमिकाओं एवं आलेखों द्वारा जैन परम्परा का पोषण करते हुए भारतीय चिन्तन को समृद्ध किया । Jain Education International भारतीय दर्शन को जैन दार्शनिकों का अवदान / 19 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003248
Book TitleBhartiya Darshan ko Jain Darshaniko ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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