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को तिलांजलि दे दें। वैज्ञानिक उपलब्धियों का परित्याग न तो सम्भव है न औचित्यपूर्ण है। किन्तु अध्यात्म ही विज्ञान का अनुशासक हो तभी एक समग्रता या पूर्णता आयेगी। और मनुष्य एक साथ समृद्धि और शान्ति को पा सकेगा। ईसावास्योपनिषद् दोनों के सम्बन्ध को उचित बताते हुए उसका स्वरूप बता है। वह कहता है, जो पदार्थ-विज्ञान या अविद्या की उपासना करता है वह अन्धकार में, तमस में प्रवेश करता है क्योंकि विज्ञान अध्यात्म के बिना अन्धा है, साथ ही वह यह भी चेतावनी देता है कि जो केवल विद्या में रत हैं वे उससे अधिक अन्धकार में चले जाते हैं। अन्ध तमः प्राविशन्ति येऽविद्यामुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायं रताः" ईशावास्योपनिषद्।।९।। वस्तुतः वह जो अविद्या और विद्या दोनों की एक साथ उपासना करता है वह अविद्या द्वारा मृत्यु को पार सकता है अर्थात् वह सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाता है और विद्या द्वारा अमृत प्राप्त करता है। विद्या चाविद्यां च यस्तवेदोभयं सह। सविद्यया मृत्यु ती विद्ययामृतमश्नुते-ईशावास्योपनिषद् ॥११॥ वस्तुत यह अमृत आत्म-शान्ति या आत्मतोष ही है। जब विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय होगा तभी मानवता का कलयाण होगा। विज्ञान जीवन के कष्टों को समाप्त कर देगा और अध्यात्म आन्तरिक शान्ति को प्रदान करेगा। आचारांग में महावीर ने अध्यात्म के लिए 'अज्झत्थ' शब्द का प्रयोग किया है और यह बताया है कि इसी के द्वारा आत्म विशुद्धि को प्राप्त किया जा सकता है। वस्तुतः अध्यात्म कुछ नहीं है वह आत्म उपलब्धि या आत्म विशुद्धि की ही एक प्रक्रिया है उसका प्रारम्भ आत्मज्ञान से है और उसकी परिनिष्पत्ति आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति अटूट निष्ठा में है। वस्तुतः अध्यात्म कुछ नहीं है वह आत्म उपलब्धि या आत्म विशुद्धि की ही एक प्रक्रिया है उसका प्रारम्भ आत्मज्ञान से है और उसकी परिनिष्पत्ति आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति अटूट निष्ठा में है। वस्तुतः आज जितनी मात्रा में पदार्थ विज्ञान विकासित हुआ है उतनी ही मात्रा में आत्मज्ञान को विकसित होना चाहिए। विज्ञान की दौड़ में अध्यात्म पीछे रह गया है। पदार्थ को जानने के प्रयत्नों में हम अपने को भुला बैठे हैं। मेरी दृष्टि में आत्मज्ञान कोई अमूर्त, तात्विक आत्मा की खोज नहीं है, वह अपने आपको जानना है। अपने आपको जानने का तात्पर्य अपने में निहित वासनाओं और विकारों को देखना है। आत्मज्ञान का अर्थ होता है, हम यह देखें कि हमारे जीवन में कहां अहंकार छिपा पड़ा है कहां और किसके प्राति घृणा और विद्वेष
जैन अध्यात्मवाद : आधुनिक संदर्भ में : २४
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