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जवाबदेही हम पर ही होगी। आज वैज्ञानिक शक्तियों का उपयोग इस दृष्टि से करना है कि वे मानव कल्याण में सहभागी बनकर इस धरती को ही स्वर्ग बना सकें। विनोबा जी ने सत्य ही कहा है, आज विज्ञान का तो विकास हुआ, किन्तु वैज्ञानिक उत्पन्न ही नहीं हुआ। क्योंकि वैज्ञानिक वह है जो निरपेक्ष होता है। आज का वैज्ञानिक राजनीतिज्ञों
और पूँजीपतियों के इधारे पर चलने वाला व्यक्ति है। वह पैसे से खरीदा जा सकता है। यह तो वैज्ञानिक की गुलामी है। ऐसे लोग अवैज्ञानिक हैं यदि वैज्ञानिक (Scientist) वैज्ञानिक (Scientific) नहीं बना, तो विज्ञान मनुष्य के लिए ही घातक सिद्ध होगा। आज विज्ञान विज्ञान के पास नहीं अध्यात्म के पास है। विनोबा जी लिखते हैं कि आज इस युग में विज्ञान की जितनी ही शक्ति बढ़ेगी। आत्मज्ञान को उतनी ही शक्ति बढ़ानी होगी। आज अमेरिका इसलिए दुःखी है कि वहां विज्ञान तो है, पर अध्यात्म है नहीं, अतः सुख तो है शान्ति नहीं। इसके विपरीत भारत में आध्यात्मिक विरासत के कारण मानसिक शान्ति तो है, किन्तु समृद्धि नहीं। इसका समाधान अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय में निहित हैं। अध्यात्म शान्ति देगा, तो विज्ञान समृद्धि। जब समृद्धि और शान्ति दोनों ही एक साथ उपस्थित होगी, मानवता अपने विकास के परम शिखर पर होगी। मनव स्वयं अतिमानव के रूप में विकसित हो जायेगा। किन्तु इसके लिए प्रयत्न करना होगा। बिना अडिग आस्था और सतत पुरुषार्थ के यह सम्भव नहीं।
आज विज्ञान ने मनुष्य को सुख-सुविधा और समृद्धि तो प्रदान कर दी फिर भी मनुष्य भय और तनाव की स्थिति में जी रहा है। उसे आन्तरिक शान्ति उपलब्ध नहीं है, उसकी समाधि भंग हो चुकी है। यदि विज्ञान के माध्यम से कोई शान्ति आ सकती है तो वह केवल श्मशान की शान्ति होगी। बाहरी साधनों से न कभी आन्तरिक शांति मिली है न उसका मिलना सम्भव ही है। इस प्रसंग में उपनिषदों का एक प्रसंग याद
आ रहा है। नारद जीवन भर वेद-वेदांग का अध्ययन करते रहे। उन्होंने अनेक विद्यायें (भौतिक विद्यायें) प्राप्त कर ली किन्तु उनके मन को कहीं सन्तोष नहीं मिला। ये सनतकुमार के पास आये और कहने लगे मैंने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया। मैं शास्त्रविद तो हूँ किन्तु आत्मविद् नहीं। आज के वैज्ञानिक भी नारद की भाँति ही हैं। वे शास्त्रविद् तो हैं किन्तु आत्मविद् नहीं। आत्मविद् हुए बिना शांति को नहीं पाया जा सकता। यद्यपि मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि हम विज्ञान और उसकी उपलब्धियों
जैन अध्यात्मवाद : आधुनिक संदर्भ में : २३
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