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दोनों में विरोध देखा जाता है, लेकिन यह अवधारणा ही भ्रान्त है । प्राचीन युग में तो विज्ञान और अध्यात्म ये शब्द भी परस्पर भिन्न अर्थ के बोधक नहीं थे। महावीर ने आचारांगसूत्र में कहा है कि जो आत्मा है वहीं विज्ञाता है और जो विज्ञाता है वही आत्मा है। '३८ यहाँ आत्मज्ञान और विज्ञान एक ही हैं। वस्तुतः विज्ञान शब्द वि + ज्ञान से बना है, 'वि' उपसर्ग विशिष्टता का द्योतक है । विशिष्ट ज्ञान ही विज्ञान है। आज जो विज्ञान शब्द केवल पदार्थ ज्ञान के रूप में रूढ़ हो गया है वह मूलतः विशिष्ट ज्ञान या आत्म ज्ञान ही था। आत्म-ज्ञान ही विज्ञान है । पुनः अध्यात्म शब्द ही अधि + आत्म से बना है । 'अधि' उपसर्ग भी विशिष्टा का ही सूचक है जहाँ आत्म की विशिष्टाता है, वही अध्यात्म है | चूँकि आत्मा ज्ञान स्वरूप ही है । अतः ज्ञान की विशिष्टा ही अध्यात्म है और वही विज्ञान है । फिर भी आज विज्ञान पदार्थ - ज्ञान के अर्थ में और अध्यात्म आत्म ज्ञान के अर्थ में रूढ़ हो गया है । मेरी दृष्टि में विज्ञान साधनों का ज्ञान है तो अध्यात्म साध्य का ज्ञान । प्रस्तुत निबन्ध में इन्ही रूढ़ अर्थों में विज्ञान और अध्यात्म शब्द का प्रायोग किया जा रहा है। एक हमें बाह्य जगत में जोड़ता है तो दूसरा हमें अपने से जोड़ता है । दोनों ही 'योग' हैं। एक साधन योग है तो दूसरा साध्ययोग । एक हमें जीवन शैली (Life style) देता है तो दूसरा हमें जीवन साध्य (Goal of life) देता है । आज हमारा दुर्भाग्य यही है कि, जो एक दूसरे के पूरक हैं, उन्हें हमने एक दूसरे का विरोधी मान लिया। आज आवश्यकता इस बात की है कि इनकी परस्पर पूरक शक्ति या अभिन्नता को समझा जाये ।
आज हम विज्ञान को पदार्थ विज्ञान को पदार्थ विज्ञान मानते हैं। आज हमने यद्यपि 'पर' या 'अनात्म' के सन्दर्भ में इतना अधिक ज्ञान अर्जित कर लिया कि 'स्व' या 'आत्म' को विस्मृत कर बैठे। हमने परमाणु के आवरण को तोड़कर उसके जर्रेजर्रे को जानने का प्रयास किया किन्तु दुर्भाग्य यही है कि अपनी आत्मा के आचरण को भेदकर अपने आपको नहीं जान सके । हम परिधि को व्यापकता देने में केन्द्र ही भुला बैठे | मनुष्य की यह परकेन्द्रितता ही उसे अपने आपसे बहुत दूर ले गई है। यही आज के जीवन की त्रासदी हैं । वह दुनिया को समझता है, जानता है, परखता है, किन्तु अपने प्रति तन्द्राग्रस्त है । उसे स्वयं यह बोध नहीं है, कि मैं कौन हूँ? मेरा कर्तव्य क्या है? लक्ष्य क्या है? वह भटक रहा है। मात्र भटक रहा है। आज से २५००
जैन अध्यात्मवाद : आधुनिक संदर्भ में :
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