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________________ करके अन्त में जो निर्णय दे, उसे मान्य कर लिय जाए। मूर्ति और मन्दिर सम्बन्धी निर्णयों में जैसा कि पूर्व में तीर्थंकर के सम्पादक डा. नेमीचंदजी ने सूचित किया था- पुरातत्वविदों की सहायता ली जा सकती हैं। स्पष्ट एवं तत्थात्मक साक्ष्यों के आधार पर जिन विवादों का निराकरण सम्भव हो, उनके सम्बन्ध में विभाजन की नीति अपना ली जाए। इस सम्बन्ध में यदि दानों सम्प्रदाय के लोग उदारदृष्टि का परिचय दें, तो यह असम्भव नहीं है। (2). परस्पर एक दूसरे की आलोचना, पर्चेबाजी या एक दूसरे के विरूद्ध समाचार पत्रों में लेखन बन्द कर दिया जाए। (3). विभिन्न सम्प्रदायों के आचार्यों के पारस्परिक मिलन एवं सामूहिक प्रवचनों के लिए प्रयास किये जाएँ। वे मिलन के समय एक दूसरे को समान भाव से आदर प्रदान करें। प्रवचन मंच पर सभी को बराबरी का स्थान दिया जाए। (4). महावीर जयन्ती, क्षमापना आदि पर्वो को सामूहिक रूप से मनाया जाये । पर्वतिथियों, संवत्सरी आदि की एकरूपता का प्रयत्न किया जाये। (5). सर्व सम्प्रदायों की भारत जैन महामण्डल या जैन महासभा जैसी कोई संस्था हो, जो पारस्परिक विवादों को सुलझाने के साथ ही जैन समाज के सामान्य हितों की रक्षा का प्रयत्न करे तथा भावी एकता के लिए आधारभूमि प्रस्तुत करे। दूसरे चरण में हमें विभिन्न उपसम्प्रदायों एवं गच्छों के विलीनीकरण का प्रयास करना होगा- अर्थात् स्थानकवासी, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक एवं तेरापन्थी अपने आवान्तर मतभेदों को त्यागकर अपना संगठन तैयार करें। इसी चरण में दिगम्बर सम्प्रदाय भी अपने अवान्तर भेदों को समाप्त कर एकरूप हो जाये । यह कार्य दुःसाध्य तो नहीं हैं, किन्तु श्रमसाध्य अवश्य है। प्रबुद्ध मुनियों की देखरेख में निष्पक्ष विद्वानों की ऐसी समिति बना दी जाये, जो प्रत्येक सम्प्रदाय के लिए आगम और वर्तमान परिस्थिति दोनों को ध्यान में रखकर एक आचार संहिता प्रस्तुत करे । जब धीरे-धीरे इम अवान्तर सम्प्रदायों के संगठन सुदृढ़ हो जायें तो अन्त में तीसरे चरण में सर्व सम्प्रदायों के विलीनीकरण के लिए जैनधर्म का सर्वमान्य स्वरूप प्रस्तुत किया जाये और चारों सम्प्रदाय अपने नाम रूपों को विलीन कर उस एक ही महासंघ के अंग बन जायें। .. जैन एकता का प्रश्न : २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003245
Book TitleJain Ekta ka Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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