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________________ होगा। मूर्तिपूजा का प्रश्न जैनधर्म के सम्प्रदायों में एक मुख्य विवादास्पद प्रश्न मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में है। दिगम्बर सम्प्रदाय के तारणपन्थी और श्वेताम्बर सम्प्रदाय के स्थानकवासी एवं तेरापन्थी मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं। मूर्तिपूजा को लेकर अधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जैनधर्म में मूर्तिपूजा का प्रचलन कब से हुआ ? यह बात स्पष्ट है कि ऐतिहासिक दृष्टि से प्राचीनतम आगम आचारांग, सूत्रकृतांग, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि में मूर्ति या मूर्तिपूजा के सन्दर्भ में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं पाये जाते हैं । अन्तकृत आदि कुछ परवर्ती आगमों में यक्ष आदि की प्रतिमाओं और उनके पूजन का उल्लेख तो है किन्तु जिन-प्रतिमा के पूजन का कोई उल्लेख नहीं है। देवलोकों में शाश्वत जिनप्रतिमा सम्बन्धी उल्लेख तथा सूर्याभदेव-और द्रौपादी के द्वारा जिन-प्रतिमा के पूजन सम्बन्धी उल्लेख समवायांग भगवती, ज्ञाताधर्मकथा एवं राजप्रश्नीय में प्राप्त होते हैं, किन्तु विशाल आगम-साहित्य की दृष्टि से ये सब उल्लेख भी अत्यल्प ही कहे जा सकते हैं। दूसरे विद्वानों द्वारा इन आगम ग्रन्थों का रचनाकाल आचारांग आदि की अपेक्षा काफी परवर्ती माना जाता है। जिन-प्रतिमा के पूजन के सम्बन्ध में विस्तृत निर्देश हमें उत्तरकालीन रचनाओं, आगमिक नियुक्तियों, चूर्णियों, भाष्यों, वृत्तियों और टीकाओं में ही उपलब्ध होते हैं। महावीर के पूर्व जिन-प्रतिमाओं के अस्तित्व का कोई साहित्यिक एवं पुरातात्विक साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं है। यद्यपि हड़प्पा से प्राप्त एक नग्नपुरुष की छोटी सी मृत्तिका-मूर्ति को जिन-प्रतिमा कहा जाता है किन्तु वह जिनप्रतिमा है, यह बात विवादास्पद ही है। महावीर की जीवनचर्या के सम्बन्ध में आचारांग, कल्पसूत्र आदि में जो प्राचीनतम उल्लेख उपलब्ध हैं उसमें उनके किसी जिन-मन्दिर में जाने या जिनमूर्ति के पूजन का उल्लेख नहीं है, यद्यपि यक्षायतनों और यक्ष-चैत्यों में उनके जाने और विश्राम करने के उल्लेख प्रचुरता से मिलते हैं । ईसा पूर्व दूसरीतीसरी शताब्दी तक रचित जैन ग्रन्थ जिन प्रतिमा और उसके पूजन के सम्बन्ध में मौन ही हैं। दिगम्बर परम्परा के कुन्दकुन्द आदि के आगमरूप मान्य ग्रन्थों में जिन-प्रतिमा सम्बन्धी क्वचित् निर्देश हैं, किन्तु ये सभी ईसा के बाद की रचनाएँ हैं। जैनधर्म में मूर्तिपूजा की प्राचीनता को सिद्ध करने के लिए यह कहा जाता है कि महावीर के जीवनकाल में ही उनकी चन्दन की एक प्रतिमा का निर्माण हुआ था, जैन एकता का प्रश्न : १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003245
Book TitleJain Ekta ka Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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