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जाती हैं जिन्हें देवों के द्वारा सम्मान आदि प्राप्त हुआ तथा जो शील के प्रभाव से शाप देने और अनुग्रह करने में समर्थ थी । कितनी ही शीलवती स्त्रियाँ महानदी के जल प्रवाह में भी नहीं डूब सकी और प्रज्वलित घोर आग में भी नहीं जल सकीं तथा सर्प व्याघ्र आदि भी उनका कुछ नहीं कर सके। कितनी ही स्त्रियाँ सर्वगुणों से सम्पन्न साधुओं और पुरुषों में श्रेष्ठ चरमशरीरी पुरूषों को जन्म देने वाली माताएँ हुई हैं। 19 अन्तकृत्दशा और उसकी वृत्ति में कृष्ण द्वारा प्रतिदिन अपनी माताओं के पादवन्दन हेतु जाने का उल्लेख है | 20 आवश्यकचूर्णि और कल्पसूत्र टीका में उल्लेख हैं कि महावीर ने अपनी माता को दुःख न हो, इस हेतु उनके जीवित रहते संसार त्याग नहीं करने का निर्णय अपने गर्भकाल में ले लिया था । " इस प्रकार नारी वासुदेव और तीर्थंकर द्वारा भी पूज्य मानी गयी हैं । महानिशीथ में कहा गया है कि स्त्री भय, लोकलज्जा, कुलांकुश एवं धर्मश्रद्धा के कारण कामग्नि के वशीभूत नहीं होती है, वह धन्य है, पुण्य है, वंदनीय है, दर्शनीय है, वह लक्षणों से युक्त है, वह सर्वकल्याणकारक है, वह सर्वोत्तम मंगल है, (अधिक क्या) वह ( तो साक्षात् ) श्रुत देवता है, सरस्वती है, अच्युता है ... परम पवित्र सिद्धि, मुक्ति, शाश्वत शिवगति है। ( महानिशीथ 2 / सूत्र 23 पृ. 36 )
जैनधर्म में तीर्थंकर का पद सर्वोच्च माना जाता है और श्वेताम्बर परम्परा ने मल्ली कुमारी को तीर्थंकर माना है । 22 इसिमण्लत्थू (ऋषि मण्डल स्तवन) में ब्राह्मी, सुन्दरी, चन्दना आदि को वन्दनीय माना गया है। 23 तीर्थंकरों की अधिष्ठायक देवियों के रूप में चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती, सिद्धायिका आदि देवियों को पूजनीय माना गया है 24 और उनकी स्तुती में परवर्ती काल में अनेक स्तोत्र रचे गये हैं। यद्यपि यह स्पष्ट है कि जैनधर्म में देवी- पूजा की पद्धति लगभग गुप्त काल में हिन्दू परम्परा के प्रभाव से आई है। उत्तराध्ययन एवं दशवैकालिक की चूर्णि में राजोमति द्वारा रथनेमि 25 को तथा आवश्यक चूर्णि में ब्राह्मी और सुन्दरी द्वारा मुनि बाहुबली को प्रतिबोधित करने के उल्लेख हैं 201 न केवल भिक्षुणियाँ अपितु गृहस्थ उपासिकाएँ भी पुरूष को सन्मार्ग पर लाने हेतु प्रतिबोधित करती थीं । उत्तराध्ययन में रानी कमलावती राजा इषुकार को सन्मार्ग दिखाती है, 27 इसी प्रकार उपासिका जयन्ती भरी सभा में महावीर से प्रश्नोत्तर करती है 28 तो कोशावेश्या अपने आवास में स्थित मुनि को सन्मार्ग दिखाती है 29 ये तथ्य इस बात के प्रमाण हैं कि जैन धर्म में नारी की अवमानना नहीं की गई। चतुर्विध धर्मसंघ में भिक्षुणीसंघ और श्राविकासंघ को स्थान देकर निग्रन्थ परम्परा
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जैन धर्म में नारी की भूमिका : 9
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