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आचारांग सूत्र
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नहीं तो किसी भी मकान में उसका ढांकना, लीपना, दरवाजे-खिडकी और इसी प्रकार भिक्षान्न (भिजु के योग्य) शुद्ध नहीं ही होते । और भिक्षु समय-समय पर चंक्रमन ( जाना-आना) करता है, स्थिर बैठता है, स्वाध्याय करता है, सोता है और भिक्षा मांगता है । इन सब कामों के लिये उसको अनुकुल स्थान मिलना कठिन है । ऐसा सुनकर कोई गृहस्थ भिक्षु के अनुकुल स्थान तैयार कर रखते हैं; उसमें कुछ समय खुद रहकर या दूसरेको उसका कुछ भाग बेचकर अपनी बुद्धि के अनुसार उसको भिक्षु के योग्य बना रखते हैं । इस पर प्रश्न उठता है कि भिक्षु का अपने ठहरने के योग्य या प्रयोग्य स्थान का वर्णन गृहस्थ के सामने करना उचित है या नहीं ? हां, उचित है । ( ऐसा करते समय उसके मन में अन्य कोई इच्छा नहीं होना चाहिये ।
बिछाने की वस्तुएँ कैसे मांगे ?
भिक्षु को, यदि बिछाने की वस्तुओं ( पाट, पाटिया आदि ) की जरूरत पड़े तो वह बारीक जीवजन्तु आदि से युक्त हो तो न ले परन्तु जो इनसे सर्वथा रहित हो, उसी को ले । उस को भी यदि दाता वापिस लेना न चाहता हो तो न ले . पर यदि उसे वापिस लेना स्वीकार हो तो ले ले। और, यदि वह बहुत शिथिल और टूटा हो तो न ले पर हृद और मजबूत हो तो ले ले । [ 8 ]
इन सब दोषों को त्याग कर भिक्षु को बिछाने की वस्तुओं को मांगने के इन चार नियमों को जानना चाहिये और इनमें से एक को स्वीकार करना चाहिये ।
१. भिक्षु घास, दूब या पराल आदि में से एक को, नाम बताकर गृहस्थ से मांगे । घास, तिनका दूब, पराल बांस की
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