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भिक्षा
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या उफनने वाला हो तो भिक्षु उनको सजीव. और सदोष जान कर न ले । इसी प्रकार ऐसी शिला पर पीसे गये बीड़ नमक और सुमुद्रनमक को भी न ले । [३४-३५ ]
गृहस्थ के घर आग पर रखा हुआ थाहार भी भिनु सदोष जान कर दिये जाने पर भी न ले, इसका कारण - यह कि गृहस्थ भिक्षु के लिये उसमें से आहार निकालते या डालते समय, उस बर्तन को हिलाने से अग्निकाय के जीवों की हिंसा करेगा। अथवा भाग को कम-ज्यादा करेगा। [३६ ३८ ]
गृहस्थ दीवार, खम्भे, खाट, मंजिल आदि ऊंचे स्थान पर रखा हुअा अाहार लाकर भिन्तु को देने लगे तो वह उसको सदोष जान कर न ले, इसका कारण यह कि ऐसे ऊंचे स्थान से श्राहार निकालते समय पाट, नसैनी आदि लगा कर चढ़ने लगे और गिर जाय तो उसके हाथ-पैर में लग जाय और दूसरे जीवजन्तु भी मरें। इसी प्रकार कोठी, खो आदि आदि स्थान से आहार लाते समय भी गृहस्थ को ऊंचा, नीचा और टेढ़ा होना पड़ता हो तो उसको भी न ले । [३७]
मिट्टिसे लीप कर बंध किया हुश्रा श्राहार भी न ले । क्योंकि उसको निकालते समय . और फिरसे लीप कर बंध करते समय अनेक पृथ्वी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस जीवों की हिंसा होती है । सजीव पृथ्वी, पाणी, वनस्पति या ब्रस जीवों पर रक्खा हुआ आहार भी न ले । [३८]
आहार के अत्यन्त गरम होने से गृहस्थ उसको सूपड़े, पंखे, पत्ते, डाली, पीछे, कपड़े, हाथ या मुंह से फूक कर या हवा करके
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