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________________ - - भगवान महावीर का तप V" उस समय शिशिर ऋतु में पाला गिरने या हवा चलने के कारण अनेक लोग तो कांपते ही रहते और कितने ही साधु उस समय बिना हवा के स्थानों को ढूंढते, कितने ही कपड़े पहिनने का विचार करते और कितने ही लकड़ी जलाते ! उस समय जितेन्द्रिय और आकांक्षा रहित वे भगवान इस सर्दी को खुले में रह कर सहन करते किसी समय सर्दी के असह्य हो जाने पर भगवान सावधानी से रात्रि को बाहर निकलकर कुछ चलते । [३६-३८] वस्त्र रहित होने के कारण तृण के स्पर्श, ठंड-गरमी के स्पर्श और डांस-मच्छर के स्पर्श-इस प्रकार अनेक स्पर्श भगवान महावीर ने समभाव से सहन किये थे । [ ४०] भगवान चलते समय आगे-पीछे पुरुष की लम्बाई जितने मार्ग पर दृष्टि रख कर, टेढ़े-मेढ़े न देखकर मार्ग की तरफ ही दृष्टि रख कर सावधानी से चलते, कोई बोलता तो वे बहुत कम बोलते और दृष्टि स्थिर करके अन्तर्मुख ही रहते । उनको इस प्रकार नग्न देख कर और उनके स्थिर नेत्रों से भयभीत हो कर लड़कों का मुंड उनका पीछा करता और चिल्लाता रहता था। [५, २१] __ ऊजाड घर, सभास्थान, प्याऊ और हाट-ऐसे स्थानों में भगवान अनेक बार ठहरते, तो कभी लुहार के स्थान पर तो कभी धर्मशालाओं में बगीचों में घरों में या नगर में ठहरते थे । इस प्रकार श्रमण ने तेरह वर्ष से अधिक समय बिताया । इन वर्षों में रात-दिन प्रयत्नशील रह कर भगवान अप्रमत्त होकर समाधि पूर्वक ध्यान करते, पूरी नींद न लेते; नींद मालूम होने पर उठ कर प्रात्मा को जागृत करते 1 किसी समय वे करवट से हो जाते, पर वह निद्रा की इच्छा से नहीं । कदाचित् निद्रा आ ही जाती तो वे उसको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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