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________________ ५६ ] त्याग कर हो वह यदि दीमक आदि से भरा हुआ हो तो उसको दूसरा जीव रहित पटिया प्राप्त करे । जिससे पाप होता हो ऐसा कोई अवलम्वन न ले । सब दुःखों को सहन करे और उससे अपनी आत्मा को उत्कृष्ट बनावे | सत्यवादी, ओजस्वी, पारगामी, कलहहीन, वस्तु स्वरूप को समझने वाला संसार में नहीं फंसा हुआ वह किन्तु क्षणभंगुर शरीर की ममता त्याग कर और अनेक संकट सहन कर के जिनशासन में विश्वास रखकर भय को पार कर जाता है । उसका मरण का अवसर है, यह उसके संसार को नष्ट करने वाला है वही विमोहायतन ( धर्माचार ) हित, सुख, क्षेम और सदा के लिये निःश्रेयसरूप है । [ १७, १८, २२२] यह · Jain Education International श्राचारांग सूत्र उससे भी उत्कृष्ट निम्न मरण विधि है। वह घास मांग ला कर बिछा, उस पर बैठ कर शरीर के समस्त व्यापार और गति का त्याग कर दे । दूसरी अवस्थाओं से यह उत्तम अवस्था है I वह ब्राह्मण अपने स्थान को बराबर देख कर अनशन स्वीकार करे । और सब अंगों का निरोध होता हो तो भी अपने स्थान से भ्रष्ट न हो । मेरे शरीर में दुःख नहीं है, ऐसा समझ कर समाधि में स्थिर रहे और काया का सब प्रकार से त्याग करे | जीवन भर संकट और आपत्तियाँ बेंगी ही, ऐसा समझ कर शरीर का त्याग करके पाप को अटकाने वाला प्रज्ञावान भिक्षु सब सहन करे । क्षणभंगुर ऐसे शब्द आदि कामों में राग न करे और कीर्ति को अचल समझ कर उन में लोभ न रखे। कोई देव उसको मानुषिक भोगों की अपेक्षा शाश्वत दिव्य वस्तुत्रों से ललचावे तो ऐसी देवमाया पर श्रद्धा न रखे और उसका स्वरूप समझ कर उसका त्याग करे | सब अर्थों में मर्छित और समाधि से आयुष्य के पार पहुँचाने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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