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________________ ३२ ] आचारांग सूत्र कुशल हैं। कम - श्रधिक, भी यही दशा होती है । वे चाहते हैं कि उनकी इस प्रकार की चर्या को कोई न जान ले वे सब मूढ मनुष्य अज्ञान और प्रमाद के दोष से धर्म को जान नहीं सकते । [ १४२-१४२ ] हे भाई! ये मनुष्य दुःखी हैं और पापकर्मों में अनेक प्रकार के परिग्रह वाले मे मनुष्य उनके पास जो छोटा-बड़ा सचित्त या चित्त है, उसमें ममता रखते उनके लिये महा भय का कारण है । [ १४५, १४६ ] अज्ञानी, मंद और मूढ़ मनुष्य के जीवन को, अग्र भाग पर स्थित हवा से हिलता हुआ और पानी के बून्द के समान समझते हैं [ १४२ ] हैं । यही 9 जो मनुष्य विषयों के स्वरूप को बराबर समझता है, वह संसार के स्वरूप को बराबर समझता है; और जो विषयों के स्वरूप को नहीं जानता, वह संसार के स्वरूप को नहीं जानता । कामभोगों को सेवन करके उनको न समझने वाला मूढ़ मनुष्य दुगुनी भूल करता है । अपने को प्राप्त विषयों का स्वरूप समझकर उनका सेवन न करे, ऐसा मैं कहता हूं । कुशल पुरुष कामभोगों को सेवन नहीं करता । [ १४३, १४४ ] संयम को स्वीकार करके हिंसा आदि को त्यागने वाला जो मनुष्य यह समझता है कि इस शरीर से संयम की साधना करने का अवसर मिला है उसके लिये कहना चाहिये कि उसने अपना कर्तव्य पालन किया । बुद्धिमान ज्ञानियों से श्रार्यों का उपदेश दिया हुआ समता धर्म प्राप्त कर ऐसा समझता है कि मुझे यह अच्छा अवसर मिला । ऐसा अवसर फिर नहीं मिलता । इसलिये मैं कहता हूं कि अपना बल संग्रह कर मत रखो। [ १४६, १५१ ] Jain Education International संयमी दूब के गिरने को तैयार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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