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सुभाषित अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे; से केयणं अरिहई पूरइत्तए । (३: ११३)
संसार के मनुष्यों की कार नाओं का पार नहीं है, वे चलनी में पानी भरने का प्रयत्न करते हैं।
कामा दुरातक्कमा, जीवियं दुप्पडिवूहगं, कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ जूरइ तिप्पई परितप्पई । (२:९२)
काम पूर्ण होना असम्भव है और जीवन बढाया नहीं जा सकता । कामेच्छु मनुष्य शोक किया करता है और परिताप उठाता रहता है।
आसं च छन्दं च विनिंच धीरे तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु जेण सिया तेण नो सिया । (२:८४)
हे धीर ! तू आशा और स्वच्छन्दता को त्याग दे। इन दोनों कांटों के कारण ही तू भटकता रहता है। जिसे तू सुख का साधन समझता है, वही दुःख का कारण है।
नालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुमंपि तेसिं नालं तारणाए वा सरणाए वा । जागित्तु दुखं पत्तेयसायं अणभिकन्तं च खलुं वय संपेहाए खणं जाणाहि पंडिए जाव सोत्तपरिन्नाणेहिं अपरिहायमाणेहि आयलैं सम्मं समणुवासेज्जासि-चि बेमि । ( २:६८-७१)
तेरे सगे-सम्बन्धी, विषय-भोग या द्रव्य-संपत्ति तेरी रक्षा नहीं कर सकते, और न तुझे बचा ही सकते हैं और तू भी उनकी रक्षा
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