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अवग्रह
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नहीं, यह सोच कर, उसके मालिक से पहिले बताये अनुसार अनुमति लेकर उसे प्राप्त करे।
२. मैं दूसरे भिन्तुओं के लिये स्थान मांगूंगा और दूसरे भिक्षुओं के मांगे हुए स्थान में ठहरूँगा।
३. मैं दूसरे भिक्षुओं के लिये स्थान मांगूंगा परन्तु दूसरों के मांगे हुए स्थान में नहीं ठहरूँगा।
४. मैं दूसरों के लिये स्थान नहीं मांगूंगा परन्तु दूसरे के मांगें हुए स्थान में ठहरूँगा।
५. मैं अपने अकेले के लिये स्थान मांगूंगा; दूसरे दो, तीन, चार, पांच के लिये नहीं।
६ जिसके मकान में, मैं स्थान प्राप्त करूँगा, उससे ही घास श्रादि (शय्या अध्ययन के अनुसार) की शय्या मांग लूंगा, नहीं तो ऊकडू या पालकी लगा कर बैठा-बैठा रात निकाल लूंगा ।
७. जिसके मकान में ठहरूंगा, उसके वहाँ पत्थर या लकड़ी की पटरी, जैसी भी मिल जाय, उसी पर सो रहूँगा, नहीं तो ऊकडू या पालकी लगा कर बैठा-बैठा रात निकाल दूंगा।
इन सातों में से एक नियम लेने वाला दूसरे की अवहेलना न करे......आदि भिक्षा अध्ययन के अन्त पृष्ट ८३ के अनुसार । [१६१]
भिन्नु या भिन्तुणी के प्राचार की यही सम्पूर्णता......श्रादि भाषा अध्ययन के अन्त-पृष्ट १०४ के अनुसार । [१६२]
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