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________________ [१०७ vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv -. देना हो तो अभी दे दो।' इस पर वह कहे कि, 'थोडी देर बाद ही तुम श्राश्रो; तो भी वह इसे स्वीकार न करे । यह सुनकर वह गृहस्थ घर में किसी से कहे कि, 'हे भाई या बहिन, अमुक वस्त्र लामो, उस वस्त्र को हम भिन्तु को दें; और अपने लिये दूसरा लावेंगे।' तो ऐसा वस्त्र सदोष जानकर भिक्षु न ले । अथवा वह गृहस्थ अपने घर के मनुष्य से ऐसा कहे कि, 'अमुक वस्त्र लामो, हम उसको सुगन्धी पदार्थ या उकाले से घिस कर साफ्न करके या सुगन्धित करके भिक्षु को दें, या ठंडे अथवा गरम पानी से धोकर दें, या उसमें के कंद, शाक भाजी आदि निकाल कर दें; तो भिन्तु तुरन्त ही उसे कह दे कि, 'हे आयुष्मान् , तुम्हें देना ही हो तो ऐसा किये विना ही दो।' इतने पर भी गृहस्थ उसे वैसा करके ही देने लगे तो वह उसे सदोष जानकर न ले। गृहस्थ भिन्नु को कोई वस्त्र देने लगे तो भिन्तु उसे कहे कि हे आयुष्मान् , मैं एक बार तुम्हारे वस्त्र को चारों तरफ से देख लूँ ' बिना देखे भाले वस्त्र को लेने में अनेक दोष हैं। कारण यह कि इस वस्त्र में, साभव है, कोई कुंडल, हार अादि प्राभूषण या बीज, धान्य आदि कोई सचित्त वस्तु बंधी हो। इस लिये पहिले ही से देख कर वस्त्र ले । [१४६] जो वस्त्र जीवजन्तु से युक्त जान पड़े, भिन्तु उसे न ले । यदि वस्त्र जीवजन्तु से रहित हो पर पूरा न हो, जीर्ण हो, थोड़े समय के लिये दिया हो, पहिनने योग्य न हो और किसी तरह चाहने योग्य न हो तो भी उसको न ले । परन्तु जो वस्त्र जीवजन्तु से रहित, पूरा, मजबूत, हमेशा के लिये दे दिया हुश्रा, पहिनने योग्य हो, उसे · निर्दोष जानकर ले ले । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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