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________________ आचारांग सूत्र १८] शांति से संयम पूर्वक चलता रहे । यदि मार्ग में लुटेरों का झुंड मिल जाय तो भी ऐसा ही करे लुटेरे पास श्राकर कपड़े आदि मांगे या निकाल देने को कहें तो वैसा न करे । इस पर वे खुद छीन लें तो फिर उनको नमस्कार, प्रार्थना करके न मांगे, पर उपदेश देकर मांगे या मौन रहकर उस की उपेक्षा करदे । और, यदि चोरोंने उसे मारापीटा हो तो उसे गांव या राजदरबार में न कहता फिरे; किसी को जाकर ऐसा न कहे, कि, ' हे श्रायुष्मान् ! इन चोरोंने मेरा ऐसा किया, वैसा किया। ऐसा कोई विचार तक मन में न करे। परन्तु व्याकुल हुए बिना शान्त रहकर सावधानी से चलता रहे । [ १३१ ] पानी को कैसे पार करे ? एक गांव से दूसरे गांव जाते समय मार्ग में कमर तक पानी हो तो पहिले सिर से पैर तक शरीर को जीवजन्तु देखकर साफ करे; फिर एक पैर पानी में, एक पैर जमीन पर ( एक पानी में तो दूसरा ऊपर ऊंचा रखकर दोनों को एक साथ पानी में नहीं रखकर ) रखकर सावधानी से अपने हाथ पैर एक दूसरे से न टकरावे, इस प्रकार चले । * + पानी में चलते समय शरीरको ठंडक देने या गरमी मिटाने के विचार से गहरे पानी में जाकर गोता न लगावे पर समान पानी में ही होकर चलता रहे । उस पार पहुँचने पर शरीर गीला हो सो किनारे ही खड़ा रहे गीले शरीर को सुखाने के लिये उसे न पोंछे, न रंगड़े, न तपावे पर जब अपने आप पानी सूख जावे तो शरीर को पोंछकर आगे बढ़े । [ १२४ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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