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________________ विहार खाना-पीना, सोना आदि व्यवहार करते हो तो उस मार्ग पर अच्छे . स्थान और प्रदेश होने पर भी न जावे। इसी प्रकार जिस मार्ग पर राजा बिना के, गणसत्तात्मक, छोटी अवस्था के राजा के, दो राजा के, किसी प्रकार के राज्य बिना के, आपस में विरोधी स्थान पड़ते हों तो वह न जावे । इसका कारण यह कि संभव है वहां के मूर्ख लोग उसको चोर, जासूस या विरोधी पक्ष का समझ कर मारें, डरावें या उसके वस्त्र प्रादि छीनकर उनको फाड-तोड डालें । [११५११६ ] - विहार करते हुए रास्ता इतना ऊबड़-खाबड़ पाजाय कि जो एक, दो, तीन, चार या पांच दिन में भी पार न हो सके तो उधर अच्छे स्थान होने पर भी न जावे क्योंकि बीच में पानी बरसने से जीवजन्तु, हरी श्रादि पैदा होने के कारण रास्ते की जमीन सजीव हो जाती है। ___ मार्ग चलते समय किला, खाई, कोट, गुफा, पर्वत पर के घर (कूटागार), तलघर, वृक्षगृह, पर्वतगृह, पूजितवृक्ष, स्तूप, सराय, या उद्यानगृह, आदि मकानों और भवनों को हाथ उठाकर या अंगुली बताकर देखे नहीं, पर सावधानी से सीधे मार्ग पर चले । इसी प्रकार जलाशय आदि के लिये समझे । इसका कारण यह कि ऐसा करने से वहां जो पशुपती हों, वे, यह समझकर कि यह हमको मारेगा, डरकर व्यर्थ इधर-उधर दौड़ते हैं। ____मार्ग में सिंह आदि हिंसक पशु को देखकर, उनसे डरकर मार्ग को न छोड़े, वन, गहन श्रादि दुर्गम स्थानों में न धुसे, पेड़ पर न चढ़ जावे; गहरे पानी में न कुद पड़े; किसी प्रकार के हथियार श्रादि के शरण की इच्छा न करे। किन्तु जरा भी घबराये बिना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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