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13-राजा जैनेह-यह सत्यप्रतिज्ञ अशोक का भतीजा था । यह भी दृढ़ जैन धर्मी था और इस ने भी अनेक जैन मंदिरों का निर्माण किया।
14-राजा ललितादित्य-यह दढ़ जैन धर्मानुयायी था। जैनधर्म का प्रचार और जैनमन्दिरों, विशाल जैनमूर्तियों का निर्माण कराकर स्थापनाएं की। एक जैन मूर्तियों युक्त विशाल जैन राजविहार का निर्माण किया। इस मन्दिर के निर्माण में इस ने चौरासी हजार तोले सोने का उपयोग किया था (कल्हण राजतरंगिणी 4 : 200) 54 हाथ (81 फुट) ऊंचे जैनस्तूप का निर्माण करवा कर उस पर गरुड़ की प्रतिमा की स्थापना की (गरुड़ जनों के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव की शासनदेवी चक्रेश्वरी की सवारी हैं) (तरंग 4 राजतरंगिणि-कल्हण)
___ 15-चंकुन मन्त्री-यह भी जैन धर्मानुयायी था । इस ने तुखार में जैनमंदिर बनवाया था। चंकुन-विहार में एक उन्नत जैनस्तूप का निर्माण कराकर उस में जिनेन्द्र भगवान की स्वर्णमयी प्रतिमाओं के स्थापना की थी (कल्हण 4:211)।
- 16-राजा कय्य-(लाढ़ देश का मांड लीक) कय्य राजा ने कय्य स्वामी का 'एक अद्भुत जैनमन्दिर बनवाया था। (नं0 11 से 15 तक काश्मीरराज्य के शासक थे)
. 17-कलिंगाधिपति चक्रवर्ती महामेघवाहन खारवेल के राज्य का विस्तार उड़ीसा से काश्मीर तक था, उस के वंशजों ने चार पीढ़ियों तक राज्य किया था। चार पीढ़ियों में अन्तिम शासक इस का प्रपौत्र राजा प्रवरसेन था यह विक्रमादित्य का समकालीन था। इन सब लोगों ने अपने सारे राज्य में जैनमन्दिरो-प्रतिमाओं की स्थापनाएं की थीं। (कल्हण राजतरंगिणि 31105, 106)
18-महात्मा गौतम बुद्ध सबसे पहले अपने धर्म का उपदेश देने केलिए जब राजगृह नगर में आये तब वहाँ जैनों के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के मन्दिर में ठहरे थे। महावग्ग बौद्ध ग्रन्थ 1, 22-23 में लिखा है कि सुप्पतित्थ (सुपार्श्वनाथ के तीर्थ) राजगृही में ठहरे। इससे यह स्पष्ट है कि गौतम बुद्ध से पहले भी जैनमन्दिर और जिनप्रतिमाओं की स्थापनाएँ तथा उनमें पूजा होती थी।
19-विक्रम की पांचवीं-छठी शताब्दी में पार्वतीपर और स्यालकोट (पंजाब) में हूण सम्राट तोरमाण ने अपने राज्य में अनेक जैनमन्दिरों का निर्माण कराया था । (कुवलयमाला)
12-परमार्हत् सम्राट सम्प्रति मौर्य (राज्य काल ई० पूर्व 224 से 184)
सम्राट अशोक मौर्य के पौत्र सम्राट सम्प्रति मोर्य ने भारत तथा भारत से बाहर अन्य देशों में सवा लाख नये जैन मंदिरों का निर्माण कराया, सवा लाख जैन प्रतिमाओं का निर्माण कराकर मन्दिरों में स्थापित किया । तेरह हजार पुराने जैन मन्दिरों का जीर्णोद्धार (मुरमत) कराया, अनार्य देशों में भी जैनधर्म का प्रचार तथा सैंकड़ों जैनमन्दिरों की स्थापनाएं की। तथा दानशालायें पौषधशालाए' स्थापित की।
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