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________________ 7-पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) में जेलहम नदी के दक्षिण तटवर्ती कटासराज्य के निकट मूर्तिगाँव (जिस का पहले नाम सिंहपुर था) में जैनमदिरों के प्राचीन खंडरों की खुदाई से प्राप्त जैनमूर्तियां आदि प्राचीन सामग्री को डा० स्टाइन ने लाहोर म्युजियम में लेजाकर मंग्रहित किया था । यह मतियां ईपूिर्व की पुरातत्त्वज्ञों ने स्वीकार की हैं। -कांगड़ा आदि (हिमाचल प्रदेश के अनेक नगरों में विद्यमान जैनमंदिरों के ध्वंसावशेषों से प्राप्त अनेक जैन मंदिर-प्रतिमाएं मिली हैं जो ईसा पूर्वकाल से लेकर विक्रम की 15 वीं शती तक की हैं । कागड़ा किले में महाभारतकालीन कटोचवंशीय राजा शिवशर्म ने आदिनाथ के जिनमदिर की स्थापना की थी तथा उसके वंशज राजा रूपचन्द्र ने अपने राजमहल में चौबीस तीर्थंकरों की रत्नों की प्रतिमाएँ स्थापित कर जैनमदिर का निर्माण किया था। 9-तक्षशिला के खंडहरों से ईसापूर्व काल के समय को प्राप्त अनेक जैन तीर्थ करों की प्रतिमाए पुरातत्त्वज्ञों ने प्राप्त की हैं। .. 10-उड़ीसा की खंडगिरि उदयगिरि की गुफा से प्राप्त जैन राजा खा वेल का शिलालेख मिला है। उस में जैनमंदिरों तथा जिनप्रतिमाओं को स्थापित करने का उल्लेख है महामेघवाहन ने मगध के राजा नन्द पर युद्ध की चढाई कर विजय प्राप्त की और वहां से कलिंग-जिन (कलिंग से अपहृत करके श्री आदिनाथ भगवान की) प्रतिमा को कलिग वापिस लाने का उल्लेख है । (यह शिलालेख ईसा पूर्व का है) इसी प्रकार यत्र-तत्र सर्वत्र भारत तथा विदेशों में जैन मंदिरों, स्तूपों, प्रतिभाओं का प्राचीन काल से ही विद्यमान होने के प्रत्यक्ष प्रमाण विद्यमान है। ___ साहित्य-2 11-काश्मीर का इतिहास लेखक कवि कल्हण अपनी राजतरंगणी में लिखता है कि-सत्यप्रतिज्ञ राजा अशोक ईसा पूर्व 1445 में काश्मीर के राज्य सिंहासन पर अरूढ़ हुआ । उसने जैनधर्म स्वीकार किया। कसबा विजवारह में इसने बहुत ही आलीशान और मजबूत जैन मंदिर बनवाये । शुष्कलेत्र तथा वितस्तात्र दोनों नगरों को इसने जैन-स्तूप मंडलों से आच्छादित कर दिया। अपने राज्य के अनेक नगरों में जैनमंदिरों का निर्माण किया जिन में से विस्तात्रपुर के धमारण्य विहार में इतना *चा जैनमंदिर बनवाया था कि जिस की ऊंचाई देखने के लिये आँखें असमर्थ हो जाती थीं। __ 1:-राजा जलोक-सत्यप्रतिज्ञ अशोक का पुत्र था यह भी अपने पिता के समान जनधर्मी था। इस ने भी जैनधर्म का प्रचार-प्रसार खूब किया और काश्मीर में अनेक जैन मंदिरों का निर्माण भी किया। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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