SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 79 में सब से पहले मूर्तिपूजा का प्रारंभ जैनियों से ही हुआ है । अन्य धर्माबलम्बियों मूर्तिपूजा का अनुकरण जैनियों से ही किया है । ( सत्यार्थ प्रकाश 12 वां सम्मुलास ). पुरातत्त्व 2- सिंध देश में मोहन-जो-दड़ो, हड़प्पा, बलोचिस्तान, पश्चिमी पंजाब, कच्छ पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत, अफगानिस्तान, सौराष्ट्र, राजपुताना आदि प्रदेशों में चन्हुदड़ों लोहुजदड़ो, कोही नम्री, नाल, रोपड़, अलीमुराद सक्कर- जोदड़ो, काहु-जोदड़ो आदि भिन्न-भिन्न साठ स्थलों, सिंधु नदी तटवर्ती प्रदेशों, जेहलम और व्यास नदियों के प्रदेशों तक की विस्तृत भूमि की खुदाई से जिस प्राचीन संस्कृति की सामग्री प्राप्त हुई है, इस संस्कृति को पुरातत्त्वज्ञों ने सिन्धुघाटी की संस्कृति का नाम दिया है । इस के आधार पर बहुत पुरानी संस्कृति की जानकारी मिली है। इस संस्कृति को पुरा-तत्त्वज्ञों ने ईसा पूर्व 3000 वर्षों की स्वीकार किया है । 3- मोहन जोदड़ो से प्राप्त जैनों के प्रथम तीर्थंकर अर्हत् ऋषभ ( आदिनाथ )| की आकृतियों की मिट्टी की सीलें मिली है । ( देखें चित्र पृष्ठ 8 + पर ) 9 4- हड़प्पा की खुदाई से, नग्न जैन तीर्थंकर की प्रतिमा का घड़ भी मिला है: यह मूर्ति पटना के समीप लुहानीपुरा की खुदाई से प्राप्त श्री ऋषमादेव की प्रतिमा के साथ मिलती जुलती है । जो कि बहुत प्राचीन है । ' - मथुरा के कंकाली टोला के स्तूप तथा उसके आस-पास से प्राप्त जटाजूट वाली ऋषभदेव, पांच सर्पफाणों वाली सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ, महावीर आदि तीर्थकरों की अनेक पाषाण प्रतिमाएं अखंडित खंडित मिली हैं । इतिहासकारों का मत है कि यह स्तूप ईसा पूर्व 700 वर्ष में श्री पार्श्वनाथ के समय से विद्यमान था । इस स्थान से ईसा पूर्वकाल से लेकर अनेक जैन प्रतिमाएँ, जैन शिलालेख आदि प्राप्त हुए हैं । 6- प्रभासपट्टन के भूमिखनन से प्राप्त एक प्राचीन ताम्रपत्र मिला है उसमें बेबीलोन के राजा नेबुचन्द्र नेजर के द्वारा सौराष्ट्र के गिरनार पर्वत पर स्थित नेमिनाथ के मंदिर के जीणोद्धार का उल्लेख है। बेबीलोन के राजा नेबुचन्द्र प्रथम का समय ई० पू० 1140 का है (यह श्री पार्श्वनाथ के पहले हुआ ।) द्वितीय का समय ईसा पूर्व 604 से 561 के लगभग कहा जाता है । (यह महावीर के केवलज्ञान से पहले हुआ ) । दोनों में से किसी राजा ने अपने देश की उस आय को जो उसे fast के द्वारा कर से प्राप्त होती थी, जूनागढ़ के गिरनार पर्वत पर स्थित अरिष्टमि की प्रतिमा के पूजन के लिये प्रदान की थी। (यह मंदिर पार्श्वनाथ से पहले का था ) | 9. विशेष जानकारी के इच्छुक हमारा ग्रंथ मध्य एशिया और पंजाब मे जैनधर्म अवश्य पढ़ें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy