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________________ 82 20-महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल-(वि० सं० 1275 से 1303) वस्तुपाल-तेजपाल दोनों सगे भाई थे। वे प्राग्वाट ज्ञातीय जैनधर्मानुयायी थे। घोलका के राजा वीरधवल के राज्य के वस्तुपाल महामंत्री और तेजपाल सेनापति था । इन दोनों भाइयों ने राज्य का खुब विस्तार करके समृद्ध और सुदृढ़ किया तथा सारी प्रजा केलिए बहुत उपकार के कार्य किये। इन्होंने 1304 नये जैनमन्दिरों का निर्माण कराया, सवा लाख जिनप्रतिमाएँ बनवाईं जिनमें पाषाण, धातु, स्वर्ण, चाँदी और रत्नों की प्रतिमाएं शामिल हैं। इनके द्वारा निर्मित कराये गये आबू देलवाड़ा के जैनमन्दिर तो विश्व में उत्तम कला का एक आदर्श हैं। 700 शिल्पकला के आदर्श नमूने के हाथीदांत के सिंहासन-मन्दिरों के लिए बनवाये । धर्मसाधना के लिए 984 धर्मशालाएँ, पौषधशालाएं', उपाश्रय बनवाये। 26000 पुराने जैनमन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया, 2500 श्रावकों के घरों में चैत्यालय बनावकर दिये। 24 हाथीदांत पर कारीगरी के सुन्दर रथ तीर्थंकर भगवन्तों की रथयात्रा केलिए जैनमन्दिरों को दिये । शत्र जय, आबू, गिरनार इन तीनों जैनतीर्थों में एक-एक तोरण बनवाकर दिया। प्रत्येक पर तीन-तीन लाख सोना मोहरें खर्चा माया । उन्नीस करोड़ रुपया के खर्च से ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियां लिखवाकर जैन शास्त्र मंडार स्थापित किये। 2500 काष्ठ के रथ बनवाकर जैनमन्दिरों में दिये। 1304 हिन्दू मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया जिन में सोमनाथ का शिवमन्दिर तथा मुलतान (पंजाब) का प्रसिद्ध सूर्यमन्दिर भी शामिल हैं। 21 जैन महामुनियो को महोत्सव पूर्वक आचार्य पदवियाँ दिलायीं। 3 जैन शास्त्रमंडारों की स्थापनाएं की। 302 हिन्दुओ के अनेक संप्रदायो के नये मन्दिर बनवाये। 64 मस्जिदें मुसलमानो को बनवाकर दी। सार्वजनिक दानशालाएँ', प्याऊ, धर्मशालाएं आदि अनेकानेक धर्म कार्य किये इत्यादि । 21-22-पेड़साह, और सोलंकी महाराजा परमात् कुमारपाल आदि अनेकों महानुभावों ने जैनमन्दिरो तथा जैनप्रतिमाओ की स्थापनाएं की । पेथड़शाह ने तो 84 जैनमन्दिर भारत के भिन्न-भिन्न नगरो में बनवाये। __यहाँ तो अति संक्षिप्त विवरण दिया है । इससे स्पष्ट है कि प्रागैतिकहासिक काल से जैनो में जिनप्रतिमा पूजन एवं जनमन्दिरों-तीर्थों के निर्माण की पद्धति विद्यमान थी, जो आज तक चली आ रही है । आज भी सारे देश में जैनमंदिरों का विस्तार है। सारांश यह है कि प्रागैतिहासिक काल से ही जिनप्रतिमाओं जैनमन्दिरों की विद्यमानता थी और उनमें पूजा उपासना के प्रमाण भी सब दिये जा चुके हैं। हम आगे पूजापद्धति पर प्रकाश डालेंगे । जैन परम्परा में श्वेतांवर-दिगम्बर दोनों परम्पराएं समान रूप से जिनप्रतिमाओं की पूजा, उपासना करते हैं। अतः दोनों की पुजा पद्धति के विषय में यहाँ विचार करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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