________________
प्रकाशकीय
इस पुस्तक के लेखक श्रद्धेय पण्डित श्री हीरालाल जी दुग्गड़, शास्त्रीय मर्मज्ञ विद्वान, सिद्धहस्त साहित्यकार, जैन दर्शन के प्रकांड विचारक, ऐतिहासिक पुरातत्त्व की शोध खोज में संशोधक और अच्छी आलोचनात्मक दृष्टि के धनी हैं। आपकी कृतियां आपकी गहन गम्भीर विद्वता, उच्चशिक्षा, विशाल अध्ययन, गवेषणात्मक एव अनुभवी स्वाध्याय शील दृष्टि की द्योतक हैं, पाठक ऐसा अनुभव किये बिना नहीं रह सकते। आपकी प्रतिभा जैन-जनेतर विद्वानों में सर्वतोमुखी है। आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, ऊर्द, अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं । आपके लिये ऐसी विचारधारा प्राप्त विद्वंद वर्ग के पत्रों में प्राप्त है।
धार्मिक, सैद्धांतिक, विधिविधान, ऐतिहासिक, शास्त्रीय, अष्टांग निमित, पुरातत्त्व आदि अनेक विषयों पर आपने छोटी-बड़ी 40 पुस्तकें लिखी हैं। जो पाठकों के लिये बहुत उपयोगी ज्ञानवर्धक और विशेष रुचिकर सिद्ध हुई हैं।
आप मात्र ज्ञान के ही धनी नहीं हैं । आप सम्यक्त्व मूल बारह व्रतधारी तथा चतुर्थ ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण व्रत के पालक हैं। श्री सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवन्तों पर तथा उनके त्रिकाल सत्य धर्म पर अनन्य अटूट श्रद्धा है । प्रतिक्रमण, देवपूजा-दर्शन, रात्री भोजन त्याग । इत्यादि आपकी जीवनचर्या के अंग बन चुके हैं।
आज आप 80 वर्ष की व द्धावस्था में भी अपना जीवन स्वाध्याय और उत्तम ग्रंथ रचनाओं में व्यतीत कर रहें हैं। सब विद्वानों की आपके प्रति यह धारणा है कि "आपको बुढ़ापा नहीं जीत पाया पर आपने बुढ़ापे पर ही विजय पाई है। लोह पुरुष के रूप में आपकी प्रसिद्धि है।
जैनधर्म और जिन प्रतिमा पूजन रहस्य-यह पुस्तक स्थापना निक्षेप-मूर्तिपूजा पर एक अलौकिक रचना है जिसे आपने कई वर्षों में बड़े परीश्रम पूर्वक तैयार किया है। यद्यपि इस विषय पर लिखे गये साहित्य की कमी नहीं है। बड़े-बड़े विद्वानों ने इस विषय पर बहत कुछ लिखा है । फिर भी यह पुस्तक नयी सामग्री से भरपूर है जो आज तक पाठकों को प्राप्त नहीं हो पायी । इस बात का पाठक स्वयं इस पुस्तक को पढ़कर अनुभव करेंगे।
पुस्तक प्रकाशन में आर्थिक सहयोग दिल्ली एव पंजाब से बाहर के साहित्य प्रेमियों के पास से लगभग साढ़े चार हजार रुपये की राशी तथा जिन शासन प्रभाविका, गुरु आत्म वल्लभ की अनन्य उपा. सिका, स्वनाम धन्या महत्तरा साध्वी श्री-मृगावती जी की महती प्रेरणा से रुपया पांच हज़ार श्री आत्मवल्लभ स्मारक शिक्षण निधि एवम् रुपया पाँच हजार श्री आत्मानन्द जैन सभा दिल्ली से इस पुस्तक के प्रकाशन के लिये सहयोग प्राप्त होने से इस पुस्तक का मूल्य लागत से भी बहुत कम मात्र दस रुपये रखा है। ताकि इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक से सामान्य पाठक भी लाभान्वित हो सकें। अक्षय तृतीया-वि० सं० 2041
के० बी० ओसवाल अध्यक्ष जैन प्राचीन साहित्य प्रकाशन मन्दिर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org