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माडल रखा हो । निर्माण में लोहे का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा । वैसे भी भारतीय शिल्प के अनुसार लोहे को निकृष्ट धातु माना गया है । लोहे और सीमेंट से बने हुए भवन की आयु लगभग 100 वर्ष मानी जाती है। यही कारण है कि समूचा निर्माण पत्थर से किया जा रहा है। ताकि शताब्दियों तक यह भवन अक्षुण्ण रहे। विशाल भवन की साढ़े सात फट मोटी नींव भी सुदड़ पत्थर की शिलाओं से बनाई गई है। जो विश्व के निर्माण इतिहास में प्रथम ही प्रयास है। इस नीव के निर्माण में ही 15 मास का टाइम व्यतीत हआ है। विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की आयु के अनुरूप इस भवन की ऊंचाई भी 84 फुट रखी गई है। यह कलात्मक भवन जैन कला के अनुरूप शृंगार चौकियों व सामरण से युक्त होगा। इसके रंगमंडप का व्यास 62 फुट होगा जो उत्तर भारत में अद्वितीय है । जैन समाज का यह कीर्ति चिह्न दिल्ली ही नहीं अपितु भारत की शान होगा तथा जैनों को गौरवान्वित करेगा।
श्री वल्लभ स्मारक के प्रांगण में ही एक और सुन्दर कलात्मक मन्दिर का भी निर्माण हो रहा है। जिसमें भगवान पार्श्वनाथ जी की अधिष्टायिका देवी माता पद्मावती जी की सुन्दर प्रतिमा विराजमान की जाएगी। इसके लिए भी जुदा ट्रस्ट की व्यवस्था की गई है।
अतिथि कक्ष तथा भूतल (बेसमैण्ट) का निर्माण शीघ्र ही पूरा हो जाएगा। अतिथि कक्ष का नाम “शी लसौरभ-विद्याविहार" होगा। बेसमेण्ट के विशाल हाल में शोध कार्य करने के लिये "श्री भोगीलाल लेहरचन्द जैन अकैडमी फार इन्डोलोजिकल स्टडीज़" की स्थापना होने जा रही है। श्री वल्लभ स्मारक भोजनालय भी चालू होने वाला है । अतिथि कक्ष तथा शोध-पीठ एवम् भोजनालय के उद्घाटन बृहस्पतिवार दिनांक 10 मई 1984 को तथा देवी पद्मावती जी की प्रतिष्ठा शुक्रवार दिनांक 11 मई 1984 को पूज्य महतरा साध्वी श्री म गावती जी की पावन निश्रा में सम्पन्न हो रहे हैं । इस हेतु द्वि-दिवसीय एक महोत्सव का आयोजन हो रहा है ;
योजना बहुमुखी तथा विर्माग कलात्मक है। इसके निर्माण में दो करोड़ रुपये व्यय होने का अनुमान है। परन्तु बढ़ती हुई घोर मंहगाई के कारण खर्च और अधिक भी हो सकता है । महत्तरा साध्वी मृगावती श्री जी तो अनिष इसमें जुटे हुए हैं । यह काम उनके लिये तो मानो जीवन मन्त्र बन चुका है। उन्होने जैन आगमों का गहराई से अध्ययन किया है। शोधकार्य में उनकी विशेष रुचि है। वे अपनी विलक्षण बुद्धि से इस निधि एवम् अन्य योजनाओं का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। उनकी सतत् एवम् सद्प्रेरणा से समाज के आगेवान तथा कार्यकर्ता, तन, मन, धन से समर्पित हैं । पूर्ण विश्वास है कि यह भागीरथ प्रयास शीघ्र ही साकार होगा। और यह संस्था संसार के जिज्ञासुओं एवं गवेषकों के लिए एक महान तथा उपयोगी केन्द्र का रूप धारण करेगी तथा भगवान महावीर की कल्याणमयी वाणी के प्रचार एवम् प्रसार का मेरुदण्ड सिद्ध होगा।
(कान्तिलाल डी. कोरा) (राजकुमार जैन) मानद मन्त्री द्वय
श्री आत्म वल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि
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