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________________ 42 वहां यात्रा करने जाते हैं। यह यात्रा हब के नाम से प्रसिद्ध है । यहाँ के हज करने वाले को हाजी कहते है । मक्के शरीफ में जाकर हाजी उस पत्थर की सातवार प्रदक्षिणा लेकर सातबार बोसा (चम्बन) ले कर अपने आप को कृत-पुण्य मानता है। 'ऐसे व्यक्ति मुसलिम जगत में हाजी साहब का पद पाकर सर्वश्रेष्ठ माने जाते है । पुनश्च विश्व भर के सब मुसलमान जब नमाज पढ़ते हैं तो उनके निवास स्थान से सैकड़ों, हजारों मील की दूरी पर रखे हुए इसी संगे असवद की तरफ मुंह वरके उसे सजवा (नमस्कार) करते हैं। अपने धर्म ग्रन्थों कुरान शरीफ आदि को भी बड़ा पूज्य मानते हैं जब कि वे भी कागज पर स्याही से लिखे हुए जड़ पौद्गालक है । 2-ईसाई-(क्रिश्चियन) अपने गिरजाघर (Church) को बड़ा परित्र पूज्य मानते हैं और इसे खुदा का घर कहते हैं। यह भी ईटों, चुने आदि जड़ पदार्थों से निर्मित एक इमारत है। उन के धर्मप्रवर्तक ईसा को सूली पर चड़ाने के प्रतीक रूप क्रास को बड़ी श्रद्धा और भक्ति से सिर झुकाते है । ईसा, ईसा की मां मरियम की मूर्तियां स्थापन करके उसे बड़ी श्रद्धा भक्ति से सिर झुकाते हैं। जहां ईसा की पार्थिव लाश को दफनाया गया था वहां योरोश्लम नगर में विद्यमान उसकी कबर पर जाकर वड़ी श्रद्धा से फूल चढ़ाते हैं । 3-सिख अपने गुरुओं के जन्मस्थानों, शहीदी स्थानों तथा उनके चमत्कार स्थानों पर बनाये हुए गुरुद्वारों में जाकर बड़ी श्रद्धा से सिर झुकाते हैं। उन के चित्रों को भी बड़ी श्रद्धा और भक्ति से सिर झुकाते है। युरुवाणी के संकलन रूप श्री गुरु ग्रन्थसाहब को तथा जहां श्री ग्रन्थसाहब को विराजमान किया जाता है उन्हें भी बड़े भक्तिभाव से नमस्कार करते हैं । उस घरती की धूल को भी सिर आँखों पर चढ़ाते हैं । ये सव भी मूर्ति पूजा के प्रकारांतर ही हैं । 4.कबीरपंथी-अपने धर्म संचालक कबीर साहब के समाधी स्थल, उनके “पहनने की लकड़ी की खड़ाऊँ तथा उन के अन्य उपकरणों को पूज्य मानकर बड़ी श्रद्धा और भक्ति से सम्मान करते हैं। --5-आर्य समाजी-आर्य समाज मंदिरों की स्थापना करते हैं अपनी समाज का प्रतीत कपड़े आदि का ओऽम् का झंडा, उस में अरूपी ईश्वर की स्थापना, अपने मत प्रर्वतक स्वामी दयानन्द के चित्रों पर बड़ी श्रद्धा से पूज्य भावना रखते हैं । वेद धर्मशास्त्र (जो कागज और स्याही जैसे जड़ पदार्थों से निर्मित है) आदि सब मूर्तिमान जड़ पदार्थ होते हुए भी उन की अवहेलना-अपमान करना अथवा अन्य को करते खकर बरदाशत नहीं करते । अंग्रेजों के राज्यकाल में निजाम हैद्राबाट का राजधानी हैद्राबाद में इनके धर्मशास्त्र सत्यार्थप्रकाश की कुछ प्रतियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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