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________________ तीसरा प्रकाश प्रतिमा : विभिन्न दृष्टिकोण आत्मकल्याण हेतू उपासना की अवधारणा में मूर्ति की आवश्यकता पर विभिन्न धर्मों में अलग-अलग मान्यताएँ हैं। सब प्रतिमा पूजा विरोधी भी किसी न किसी रूप में मूर्तिपूजक अवश्य हैं। पर उससे आत्मकल्याण संभव नहीं। निराकार अरूपी ईश्वर को मानने वालों के लिए तो उनके ईश्वर की मूर्ति बनाना सर्वथा असंभव है क्योंकि मूर्ति तो साकार की ही बन सकती है साकार का ही चित्र, फोटो मूर्ति आदि बनाना संभव है । जिस का कोई आकार ही नहीं है सदा निराकार अरूपी है, ऐसे ईश्वर का ध्यान, उस की उपासना उस परमात्मा के आचार, विचार का सर्वथा अभाव होने से उस का मनन चिंतन-ध्यान कदापि संभव नहीं है । परन्तु फिर भी उन्हें उपासना के लिए किसी न किसी आकार को माध्यम बनाना ही पड़ा है। 1-सर्व प्रथम-मुसलमानों ने अपने उत्पत्तिकाल से ही बुत (मूर्ति) विरोधी होते हुए भी पीरों-पेगम्बरों के मकवरों, कबरों, ताजियों, इमामवाड़ों, मस्जिदों को पूज्य मानकर उनकी उपासना चालू की। एक मुसलमान को अपने इष्ट की मूर्ति को प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप में अपने इष्ट के साथ कुछ वस्तुओं के आकारों द्वारा भक्ति को मान्य रखना ही पड़ता है। मस्जिद, मस्जिद का समस्त आकार तथा उस की एक-एक ईट को ईश्वर की मूर्ति जैसी पवित्रता की नजर से देखता है। उसके रक्षण के लिए प्राणों की बाजी लगा देता है। मस्जिद भी एक आकारवाली जड़ वस्तु है । अरब देश के मक्का नगर में हजरत मुहम्मद साहब के अनुयायी मुसलमानों ने उनके स्मारक रूप में एक बिल्डिंग में एक बड़े काले पत्थर की स्थापना कर रखी है, उसे संगे अस्वद कहते हैं। उसकी पूजा उपासना के लिए विश्व के कोने-कोने से मुसलमान 4-इस पर प्रकाश डालते हुए जे मुरेमिचलस-दी ग्रेट रिलिजन्स आफ इंडिया नामक पुस्तक में लिखता है कि-- मुसलमान जब हज करते हैं। तो "In Pilgrim garb they walk seventimes round the sacred Mosque they kiss thc black stone seven times, they drink the water in tensely brakish of the wall of Yenzem, they shave their heads and pair their nails and have their hair and nails burried. They then ascent mount Arafat, throw showers of stones at the pillers. This is understood to be stining the devil. अर्थात्-यात्री (हाजी) लोग पवित्र पोशाक पहनकर मस्जिद की सात बार प्रदक्षिणा देते हैं तथा वहाँ पर जो काला पत्थर स्थापित किया हुआ है उसे सातवार चूमते हैं । यमजम कुए का पानी जो बिल्कुल खारा है उस का आचमन करते हैं। वहां वे अपना सिर मुडवाकर और नाखुनों को कटवाकर कटे हुए बालों और नाखुनों को घरती में गाड़ देते हैं बाद में आराफट पहाड़ पर चढ़ते हैं वहां जो तीन स्तम्भ दिखलाई देते हैं उन की तरफ पत्थर फेंकते हैं । ऐसा करने से उनका इरादा शंतान को भगा देने का रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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