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________________ 21 भेद करने में मूलभूत भावना ज्ञान ही समर्थ है । इस के अतिरिक्त दूसरा ज्ञान नहीं है । यही कारण है कि भावना ज्ञान द्वारा देखने जानने पर विपरीत प्रवृत्ति नहीं हो सकती । अनुकूल प्रवृत्ति ही होगी । अतः अपने सब कार्यों और अनुष्ठानों में शुद्ध पवित्र-निर्मल उच्च प्रकार की भावना रखें। यही श्रयस्कर मार्ग हैं। वास्तव में भावना ज्ञान ही सद्विचारों का प्रेरक ज्ञान है । सद् विचार ही सत्कर्मों को करने में प्रेरक हैं और उत्साहित करने वाले हैं । इसलिए प्रतिक्षण भावना ज्ञान मन में रखें । भावना ज्ञान की उत्पत्ति शास्त्रोक्त प्रवृत्ति से है । शास्त्र के वचन को भलीभाँति चिन्तन मनन करना- सोचना-समझना तथा उनकी समालोचना सहित किसी कार्य में प्रवृत्ति करना यह भावना ज्ञान का उत्पत्ति स्थान है। वीतराग सर्वत्र प्रणीत शास्त्र द्वारा कथित अनुष्ठानों में उपयोग और विवेक सहित की हुई प्रवृत्ति भवाना ज्ञान पैदा करती है । प्रश्न - वचनोपयोग सहित शस्त्रोक्त प्रवृत्ति भावना का कारण क्यों है ? समाधान - शास्त्र में यह बात इस प्रकार है और इस प्रकार नहीं है ऐसे मनन पूर्वक शास्त्र में जैसी प्रवृत्ति करना उचित कही है वैसा विवेक पूर्वक कार्य करना बहुत गुणकारी है, इसलि शास्त्रोक्त वचन का विचार करना बहुत गुणकारी है, शास्त्र में वीतराग ज्ञानी जनों का अनुभव तथा जिस मार्ग का आचरण करने से इष्ट सिद्धि होती है इस का सम्यक् प्रकार से वर्णन होता है इस लिए उस के अनुसार विचार पूर्वक विवेक सहित प्रवृत्ति करने से भावना ज्ञान होता है। वचनोपयोग द्वारा प्रवृत्ति करने से अचिन्त्य चिन्तामणि समान भगवान का बहुमान सहित स्मरण होता है। ऐसे बहुमान पूर्वक भगवान का स्मरण करने से हृदय में भगवान की स्थापना होती है । भगवान की स्थापना होने से क्रिया करने पर चित्त क्रिया में ही तल्लीन रहता है । अन्यथा वह भावक्रिया न होकर केवल द्रव्यक्रिया ही रह जाती है । आवक्रिया के बिना कर्म की निर्जरा और क्षय संभव नहीं । इस लिए क्रिया करते समय चित्तको उसी में ही एकाग्र और तल्लीन रखें । प्रश्न - भगवान का कहा करने से क्या लाभ होता है ? समाधान - भगवान की आज्ञा का पालन करना, यहो भगवान की वास्तविक भक्ति, पूजा है । भक्ति और उपासना केलिए उन की आज्ञा का पालन करना परमावश्यक है | अतः आराधना से उन की भक्ति होती है। यानी भगवान की भक्ति करने का एक ही मार्ग है और वह उनके उपदेश से आज्ञा पालन में है । जो भगवान की आज्ञा के अनुसार काम करता है वही वस्तुतः भगवान का भगत है । यह बात निश्चित है । भगवान तो अपने करने योग्य सब कुछ कर चुके हैं । वे अपना अन्तिम ध्येय मोक्ष भी प्राप्त कर चुके हैं । इसलिए वे कृत-कृत्य हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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