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प्रश्न – यदि प्रमु कृत-कृत्य हैं तो उनकी पुष्पादि से पूजा करने का क्या प्रयोजन है ?
समाधान पुष्पादि से पूजा द्रव्य-स्तुति है। द्रव्य-स्तुति से भी भगवान की आज्ञा का पालन होता है । कहा भी है कि
"काले सुइभूएणं विसिट्ठ पुप्फाइएहि विहिणा उ । सार थुइ-थोल-गुरुई जितपुआ होइ कायव" ।। 202।।
(हरिभद्र सूरि कृत धर्मबिन्दु) अर्थात -समय पर निरन्तर पवित्र होकर विशिष्ट पुष्पादि से तथा विधि पूर्वक स्तुति व स्तोत्रादि द्वारा महान जिनपूजा करना योग्य है। ऐसा शास्त्रोक्त उपदेश है। इस आज्ञा के अनुसार चलने से भी भक्ति उपासना होती है अतः भावपूजा और द्रव्यपूजा दोनों ही प्रभु भकिा के मार्ग हैं कहा भी कि
"जिनमतं यः कुर्यात् जिन भवन-बिबं पूजा।" तस्य नरामर-शिव-सुख-फलानि कर-पल्लव-स्थानि 12031
(हरिभद्र सूरि कृत धर्मबिन्दु) अर्थात्-जो जिनधर्म, जिनमन्दिर, जिन प्रतिमा को करता-कराता है और उसकी पूजा, उपासना भक्ति करता है उस मनुष्य की हथेली में मानव, देवता और मोक्ष के सब सुख आ जाते हैं ! तथा भगवान का हृदय में वास रहने से क्लिष्ट कर्मों का क्षय भी हो जाता है। जिस प्रकार जल के साथ अग्नि नहीं रह सकती, जल से अनि बुझ जाती है, उसी प्रकार भगवान के चित्त में रहने से क्लिष्ट कर्म स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं।
जिन व्यकिट का विवेकपूर्ण अपना वित्त कर्तव्य पालन करने में ततार रहता है, उसे उस कार्य में प्रायः सथला नहीं होती सावधानी रखने में अतिचार (स्वलना) होने नही पाता। ऐसे मार्ग पर चलने वाले किसी व्यक्ति को यदि कभी अपभोग अथवा अधिकार या शिकवि किकर्मों के उदय से अतिवार सग भी जावे, तो वह भी है जो सीपको राह: अचानक कांटा लग जाने, ज्वर आ जावे, अधना दिया हो जाये और ऐपा होगा सच है। इसलिए कधी अतिवार लग भी सकता है। पर अधिकांश लो विवेकपू उलित जनठान करने वाले को अतिचार ला संभव नहीं । शास्त्र में कहा है कि अपनी शक्ति के अनुसार ही उचित कर्तव्य करना चाहिए । शक्ति के उपरांत कार्य करने से मार्तध्यान का प्रसंग आता है।
अत: जिन (तीर्थंकर) की अदिद्यमानता में उनकी मूर्ति के द्वारा ईश्वर पूजा हो साधन है, इसी के द्वारा हम अपना आत्म कल्याण कर सकते हैं। इस का विवेचन हम इस पुस्तक में आगे विस्तार पूर्वक करेंगे और शक्ति उपरांत कार्य करने से कुविचार उठते हैं उससे कर्म बन्ध होता है । विवेकपूर्ण शक्ति के अनुसार कार्य करने से शान्ति-संतोष तथा चित्त में आह्लाद होता है इस लिए ऐसे अनुष्ठान से अति. चार लगना प्रायः संभव नहीं है।
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