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________________ 239 "भक्ति, परमार्थ, सेवा, रक्षण, दान, गुरुभक्ति, अथिति-सत्कार, विनय आदि उच्च वृत्तियाँ ही पोषण प्राप्त करेंगी। यदि राजसी प्रकृति वाला वैभवशाली जीवनवाला; विलासी स्वभाव वाला होगा तो उसमें विषयेच्छा, स्वार्थपरता, महत्वता, स्वार्थ साधन परोपकार, दया दान कीति और कर्तव्य पालन आदि मध्यम वृत्तियाँ ही पोषण पायेंगी तथा स्वार्थमय भावना में अथवा इच्छाएँ पुष्ट होते हुए प्रसंगोपात अनेक प्रकार की हल्की नीची वृत्तियां अन्तःकरण में बढ़ती जाएंगीों ___और यदि राजा तामसी प्रकृतिवाला होगा तो अपने भोजन केलिये मौज-शौक केलिये और अधिकार केलिये उसके मन में क्रोध, अभिमान, कपट, लोभ, राग-द्वेष तिस्कार, अन्याय, असत्य, अप्रमाणिकता, व्यभिचार, कुव्यसन, कायरता, अधर्म, अनीति, निर्दयता, दम्भ, महत्ता, ईर्ष्या, द्वेष और मोह इत्यादि वृत्तियों का पोषण होगा तथा उन पोषण पाई हुई वृत्तियों को भोगने केलिये जहाँ अनुकूलता होगी वहीं उसे फिर जन्म लेना पडेगा । ____धर्मगुरु यदि सात्विक प्रकृति वाला होगा तो उसके हृदय में सात्विक वृत्तियाँ होंगी परन्तु यदि वह हठीला जिद्दी होगा, धर्मान्ध अथवा अज्ञानी भी होगा तो तामसी प्रकृति वाले राजा के समान ही वृत्तियाँ प्रायः उसके हृदय में भी होंगी। क्योंकि धर्मगरु भी एक बड़ा आदमी है । तथा अधिकार की गरमी भी कुछ भिन्न प्रकार से प्रायः वैसी ही उसमें होती है। मनुष्य यदि उद्यमी होगा तो पुरुषार्थ, स्वाधीनता, उत्साह, स्वतन्त्रता, वीरता आदि की वृत्तियाँ उस में होंगी । इन वृत्तियों से उनके जीवन के संयोगों तथा निमित्त के प्रमाण में दूसरी वृत्तियाँ भी परिपुष्ट होंगी। मनुष्य यदि आलसी, कर्जदार या भिखारी होगा तो दुःख कायरता, निराधारता, निरुत्साह, मंदता, अज्ञान, असन्तोष, लोभ, क्लेश, केवल दुःखमय विचार, ईर्षा, द्वेष आदि की वृत्तियाँ मुख्यतया उसमें होंगी तथा उसके उस समय के संयोगों के प्रमाण में दूसरी भी क्रोध आदि की वृत्तियाँ पुष्ट होती रहेंगी। फोजदार अथवा जेलर के हृदय में निर्दयता, निष्ठुरता, चंचलता, सत्ताबल आदि वृत्तियाँ स्वाभाविक ही हो जाती हैं । नौकरों के चित्त में उनके स्वाभवानुसार प्रमाणिकता अथवा अप्रमाणिकता की वृत्तियाँ हुआ करती हैं। शिकारियों और कसाइयों के (जो खुराक केलिये पशुओं को पालते हैं) हृदय में हिंसा, करता, लोभादि की वृत्तियाँ होती है। अनाज आदि के व्यापारियों के हृदय में अनाजादि लेते समय शांति की तथा बेचते समय अशांति की वृत्ति होती है। ___ सामान्यतया सभी तरह के व्यापारी शांति तया अशांति के समय-उनका माल बिके या न बिके तो भी उसी प्रकार के प्रसंग तथा काल के ऊपर अपनी उच्च या नीच वृत्तियों को पोषण दिये बिना नहीं रहते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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