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16. व्यवहार में वृत्ति स्वरूप का अवलोकन हमारे मन के अन्दर जो भिन्न-भिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं उनका जब कुछ अधिक स्थूल रूप हो जाता है तब उसे वृत्ति कहा जाता है । वृत्तियाँ मन में उत्पन्न होती है। ये बीज स्वरूप हैं। जैसे कि एक में से अनेक बीज पैदा किए जा सकते हैं वैसे ही वृत्ति के साथ जब अपनी राग अथवा द्वेष वाली भावना मिलती है तब उससे अनेक वृत्तियां उत्पन्न हो जाती हैं। हमारा रात दिन का व्यवहार इन वत्तियों को पोषण करने वाला हैं । नवीन कर्मों के बन्धन और उनके कारण भावि में प्राप्त होने वाले जन्म का आधार मन में उत्पन्न होने वाली वृत्तियाँ ही हैं। यदि मन के अन्दर सात्विक भाव वाली वृत्तियां उत्पन्न हो जाएं अथवा निरन्तर आत्म जागृति रख प्रबल पुरुषार्थ द्वारा परमार्थी आचरण बनाकर, सात्विक भाव वाली वृत्तियों को ही उत्साहित करें तथा व्यवहार के हरेक प्रसंग पर उन्हीं को टिका रखें तो हम अपना भावी जन्म तथा वर्तमान जीवन बहुत ऊंचा बना सकेंगे।
यदि हमारा आचरण मात्र व्यवहार केलिये तथा परमार्थ भी व्यवहार की अनुकूलता के लिये ही होंगे तो इससे हमारी राजस प्रकृति पोषण पायेगी। जिससे हमारा जीवन मध्यम दर्जे का बन जायेगा । यदि हमारा आचरण केवल स्वार्थ वासनाओं को ही पोषण करने वाला है तो इन्हें स्वार्थ और वासनाओं को प्राप्त करने केलिये विविध प्रकार की रौद्र प्रवृत्तियों वाला एवं अनेक जीवों का संहार करने वाला होगा तो हमारी वृत्तियाँ तामस भाव द्वारा पोषण पाकर हमारे भावी जन्म को बिगाड़ देंगी। अर्थात् इसके परिणाम स्वरूप हमें भावी जन्म वहुत ही खराब प्राप्त होगा।
संक्षेप में कहें तो हमारी मनोवृत्तियो का सात्विक, राजसिक और तामसिक इन तीन प्रकार की वृत्तियों में समावेश हो जाता है। यह प्रत्येक वृत्ति विवेक और विचार बल से बदली जा सकती हैं। चाहे कैसे भी विषम प्रसंग क्यों न हों उन्हें भी हम विचार बल और विवेक की सहायता से बदल सकते हैं । तामसिक और राजसिक प्रकृति को सात्विक रूप से बदलकर आत्मा को पतन की ओर से रोककर उन्नत बना सकने का सामर्थ्य हमारे हाथ में हैं। जब कभी प्रसंग अपने हाथ में आये तब उसे जाने नहीं देना चाहिये । चिरकाल से परिपुष्ट बनी नीच प्रवृत्तियां अपना दुःखमय प्रभाव दिखलाये बिना नहीं रहेगी।
दुनिया में बड़े बड़े कहे जाने वाले मनुष्यों की वृत्तियों का पोषण भी बड़ा ही होता है। परन्तु यदि वे आत्मभाव की तरफ जागृत होंगे तथा वृत्तियों के पोषण से उत्पन्न होने वाले सुख-दुःख का उन्हें ध्यान होगा तो वे अधम प्रवृत्तियों का पोषण नहीं करेंगे। यदि जीवन हल्का नीच होगा तो नीच वृत्तियों का ही पोषण होगा । यदि जीवन उच्च होगा तो उसकी वृत्तियां भी उच्च प्रकार का पोषण पायेंगी। अच्छे या बुरे निमित से वृत्तियों में परिवर्तन हुए बिना नहीं रहता।
___राजा यदि सात्विक वृत्ति का होगा तो उसमें अहिंसा, सत्य, प्रमाणिकता, क्षमा, नम्रता, उदारता, परोपकार, प्रेम, सत्कार, न्यायाशील, वीरता, वात्सलका, ज्ञान,
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