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जो प्रभु के माता के गर्भ में अवतरित होने पर उनकी माता जो चौदह महास्वप्न देखती है और गर्भ से जन्म लेने के बाद छप्पन दिक्कमारियों का जन्मगृह में तीर्थंकर तथा तीर्थंकर की माता का शुचिकर्म के लिए सब विधि का वर्णन एवं 64 इन्द्रों का देव देवियों के साथ उपस्थित होकर मेरुपर्वत पर ले जाकर तीर्थंकर का अभिषेक ( स्नान ), वस्त्रालंकार, गंध विलेपन आदि से पूजा करते हैं और बड़े ठाठ के साथ प्रभु का जन्म महोत्सव मनाने के लिए नन्दीश्वर द्वीप में जाकर शाश्वत जिनप्रतिमाओं की - पूजा वन्दना करके आठ दिन लगातार अष्टान्हिका महोत्सव मनाते हैं ।
श्रावक-श्राविकाओं की स्नात पूजा करते समय यह भावना होती है कि जिस प्रकार छप्पन दिक्क कुमारियों, इन्द्रों और देव - देवियों ने साक्षात् प्रभु का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाकर उनकी पूजा भक्ति की थी वैसे तीर्थंकर की अविद्यमानता में "हम भी उनकी प्रतिमा द्वारा पूजा सेवा करके च्यवन तथा जन्म कल्याणकों का महोत्सव - मनाकर आत्मकल्याण केलिए श्रद्धा और भक्ति से भावना करते हैं । आगम में कहा भी है कि जिन पडिमा जिन सारखी है । जिनप्रतिभा को जिन जैसी क्यों मानना उचित इसका विस्तार पूर्वक विवेचन हम जिनपूजा पद्धति में कर आए हैं ।
स्नान पूजा के पश्चात् अष्टप्रकारी पूजा की जाती है । यथा 2. अष्टप्रकारी पूजा अर्थ तथा भावना सहित 1. जल पूजा
श्लोक - विमल केवल भासन भासकरं । जगति जन्तु महोदय कारणम् ॥ जिनवर बहुमान जलौघतः । शुचिमनः स्नपयामी विशुद्धये ॥1॥
अर्थ - जो जिनेश्वर प्रभु निर्मल केवलज्ञानरूपी सूर्य से प्रकाशित है, जो संसार के प्राणियों को उत्कर्ष के परमधाम हैं, ऐसे जिनेन्द्र भगवान का मैं पूर्ण भक्ति - सहित विशुद्ध मन से जल समूह से अभिषेक (जल पूजा) करता है ।
भावना - प्रभु को जलादि से स्नान कराते समय मन में यह भावना होनी चाहिए कि हे प्रभु! आप तो बाह्य आभ्यंतर से पवित्र हैं । आपकी जल से पूजा करने - से मैं प्रार्थना करता हूं कि पानी जैसे बाहर के मैल को दूर करता है, (2) तृष्णा को • बुझाता है तथा (3) ताप को शांत करता है । ऐसे ही शुद्ध भाव रूपी जल से आपकी भक्ति करने से मेरी आत्मा के साथ अनादि काल से लगी हुई कर्म रूपी मैल दूर हो जावे, विषय - कषाय रूप तृष्णा बुझ जावे और विविध ताप शांत हो । 2. चन्दन पूजा
- श्लोक - सकल - मोह- तमिस्र विनाशनं । परम- शीतल-भाव-युतं जिनम् ॥ विनय कुँकम दर्शन चंदनैः । सहज तत्व विकास - कृताऽर्चये ॥12॥
1. चन्दन पूजा प्रभु के नवांगों पर तिलक लगाकर करनी चाहिए। नवांग पूजा की विधि अर्थ सहित आगे लिखेंगे ।
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