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________________ 203 प्रतिमायें पूजते हैं। [गृहस्थावस्था में तीर्थंकर अवधिज्ञानी होते हैं । कहीं-कहीं इस देश में बौद्धमती भी है। 11. चीन देश के अनेक नगरों में आठ जातियों के जैनी हैं । अकेले पेकिन शहर में तीन सौ घर जैनों के हैं। जिनमन्दिर शिखरबद्ध हैं वे भी जड़ाउजड़े है जिनप्रतिमायें खड़े योग की तथा पद्मासन की हैं। उनका एक हाथ सिर पर लोच कर रहा है। [दीक्षा कल्याणक की जिनप्रतिमायें] । इन मग्दिरों में स्वर्णमयी चित्राम हो रहा है। छत्र हरे पन्ने तथा मोतियों के डब्बेदार हैं । स्वर्ण चाँदी के कल्पवृक्ष-अशोकवृक्ष बन रहे हैं । मन्दिरों में वन रचना बहुत है क्योंकि वे दीक्षा समय के पूजक हैं । आगम चीन की बोलचाल और लिपि में है। 12. तातार देश के सागर नगर में पातके और धंधेलवाल जाति के जनी है। यहां के जैनमन्दिरों में जिनबिंब बड़े मनोहर हैं। सब बिबों के दोनों हाथ उठे हुए हैं। यहां के जैनी कहते हैं कि वे धर्मदातार हैं। दोनों हाथ उठा कर भव्य जीवों को धर्मोपदेश दे रहे हैं । धंधेलवाल जैनी कहते हैं कि ये तीनलोक ते ईश्वर हैं, दोनों हाथ उठाकर समवसरण में भव्यजीवों में प्रतिबोध दे रहे हैं। 13. छोटी तिब्बत में वाघानारे जैनियों के आठ हजार घर हैं । दो हजार जैन मन्दिर हैं । इन मन्दिरों में अरिहंत की माता के बिंब हैं इन मन्दिरों की छत्तों में रत्नवरसेन के चिन्ह हैं। स्वप्नों के चित्राम भी हो रहे हैं। फूलों की शय्या हो रही है । गर्भ (च्यवन) कल्याणक पूजते हैं। ___14. इस छोटी तिब्बत में एकल नगर है। इस देश में जैनी राजा राज्य करता है । इस नगर में नदी के किनारे पर हजारों जैन मन्दिर है यहां जेठ वदि 14 को बड़ी धूमधाम से महोत्सव होता है । इसी नदी के किनारे पर संगमरमर का सुनहरी कामदार जड़ाऊ 50 गज ऊंचा एक मेरु पर्वत हैं। उसके पूर्व-पश्चिम में महाविदेह के आकार बन रहे हैं । उनमें बहुत सुन्दर छोटी-छोटी नदियाँ बन रही हैं। जिनप्रतिमायें बहुत छोटे-छोटे आकार की है। मुट्ठी बांधे जन्म समय की हैं। यहां के जैनी जन्मावस्था का पूजन करते हैं। उन मेलों में भगवान की प्रतिमा एक मनुष्य आभूषण मुकुट पहने इन्द्र का रूप धारण करके प्रात: समय उस मेरुपर्वत पर ले जाता है और उसके साथ नगर के सारे नर-नारी मिलकर मेरु पर चढ़कर 1008 जल के कलशों से प्रतिमा को स्नान कराते हैं। तीर्थंकर प्रभु की प्रतिमा को रथ में बिठला कर पांच दिनों तक बड़ी धूमधाम से महोत्सव मनाते हैं। फिर प्रतिमा को रथ में साथ लेकर नगर में वापिस आते हैं। 15. इसी देश में सोहना जाति के जैन हैं। ये राज्यविभूति वाली जिन प्रतिमाओं को पूजते हैं । इनकी प्रतिमाओं के सिर पर मुकुट विराजमान होते हैं । अलंकारों से अलंकृत होती हैं। ये राज्यविभूति (दीक्षा से पहले की अवस्था) में मानते है। राज्य विभूति और जन्म समय की मान्यता वालों में कोई विशेष भेद नहीं है और न कोई विरोध है । दोनों उत्सव एक हो जाते हैं । (जन्म, दीक्षा कल्याणक के उत्सव. होने से)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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