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प्राप्ति होती है।
ऊपर कहे हुए लक्षणों से रहित जिनप्रतिमा अशुभ होने से अपूजनीक होती है। ऊपर कहे हुए लक्षणों से युक्त होने पर भी यदि किसी कारण से सौ वर्ष से पहले जिनप्रतिभा दूषित हो गयी हो तो वह भी पूजनीक नहीं है।
आधार (सिंहासन), परिकर, तथा लांछन आदि खण्डित हों तो वह प्रतिमा भी पूजनीक है।
जो उत्तम तथा प्रामाणिक पुरुष द्वारा विधिपूर्वक चैत्य (मंदिर) आदि में प्रतिष्ठित कराई हो और कदाचित सौ वर्ष के बाद किसी अंग से खंडित न हो जावे तो भी पूजने योग्य है। इसलिए शास्त्रों में स्पष्ट कहा है कि
___ "बरिस सयाओ उड्ढों बिंब उत्तमेहिं संठवियं बिमलंगु वि पुइआई तं बिबं निफ्फल न जाओ।"
परन्तु इतना विशेष है कि श्री मूलनायक की प्रतिमा मुख, नेत्र, कटिभाग आदि से खंडित हो तो सर्वथा पूजने के अयोग्य है ।
जिस प्रकार धातु तथा लेपादि की प्रतिमायें विकलांग होने से फिर ठीक सर्वांग सुन्दर करवा ली जाती हैं । वैसे पाषाण, काष्ठादि तथा रत्नमयबिंबं खंडित हो जाने से पुनः ठीक नहीं हो पाते । बेडोल अंग वाली, नीची दृष्टिवाली, अधो मखवाली, भयंकर मुखवाली प्रतिमा देखने वाले को शांत भाव उत्पन्न नहीं कर सकती । तथा स्वामी का नाश, राजादि का भय, द्रव्य का नाश, एवं शोक संतापादि अशुभ का सूचन करने वाली होने से अपूजनीय कही हैं।
यथोक्त उचित अंगवाली, शांत-सौम्य दृष्टि वाली जिनप्रतिमा, सुंदर भाव को उत्पन्न करने वाली, शांत और सौभाग्य की वृद्धि करने वाली, शुभ अर्थ को देने वाली. होने से सदा पूजनीय कही है।
घरमंदिर में गृहस्थों को कैसी प्रतिमा पूजनी चाहिए? ___ उपर्युक्त दोषों से रहित, एक से ग्यारह बंगुल के नापवाली, परिकर सहित अर्थात् अष्ट प्रतिहार्य सहित, स्वर्ण, चांदी, रत्न पित्तल अथवा अष्टधातु की सर्वांग सुंदर जिनप्रतिमा गृहस्थों को घर चैत्यालय (मंदिर) में पधराकर पूजा भक्ति करनी चाहिए । अन्य धातु की प्रतिमा कदापि नहीं लेनी चाहिए । घर चैत्यालय में ग्यारह अंगुल तक एकी (1, 3, 5, 7, 9, 11) अंगुल वाली प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। परन्तु दोकी (2, 4, 6, 8, 10) अंगुल की प्रतिमा स्थापित नहीं करनी चाहिए। घरमंदिर में मल्लिनाथ, नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) तथा महावीर की प्रतिमा स्थापित नहीं करनी चाहिए। ऐसा आचार्यों का मत है ।
अपरच शास्त्र में कहा है कि
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