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________________ 193 "समयावलि सुत्ताओ लेवोबल कट्ठ दंत लोहाणं । परिकर-माण-रहियं घरम्मि न हु पूयए बिबं ।।1।। अर्थात्-परिकर बिना उपर्युक्त मान (नाप) रहित, तथा लेपवाली, हाथी दांत, काष्ठ, लोहेवाली, बाल, मिट्टी की एवं चित्र में चित्रित जिनप्रतिमा को गृहस्थ के घर में पूजनीक नहीं है । इस लिए पूजनी नहीं चाहिए। घर मंदिर की प्रतिमा के आगे बहुत साम्रग्री की आवश्यकता नहीं है । उत्कृष्ठ शुद्ध भक्ति भाव से स्नान (अभिषेक) आदि से पजा करनी चाहिए। त्रिकाल पूजा करे । 1. प्रात: वासक्षेप से, 2-मध्याह्न में स्नान, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, आदि से, 3-सायं आरती, मंगलदीपक से पूजा करनी चाहिए। हम लिख आए हैं कि ग्यारह अंगुल से बड़ी प्रतिमा पर मंदिर में पूजनी नहीं चाहिए । ग्यारह अंगुल से अधिक नापवाली प्रतिमा तो निश्राकृत आदि मंदिरों में ही पूजने योग्य है। घर मंदिर में पूजनीक जिनप्रतिमा का स्वरूप जिनप्रतिमा का मस्तक, कपाल, कान और नाक के ऊपर बाहर निकले हुए तीन छत्रों का विस्तार होता है तथा चरणों के आगे नव ग्रह और यक्ष-यक्षिणी का होना सुखदायक है। प्रतिमा के पाषारण और लकड़ो को परीक्षा 1. यदि प्रतिमा का और उनके परिकर का पाषाण दाग़वाला हो तो अच्छा नहीं है। इसलिए पाषाण की परीक्षा करके बिना दाग़वाली मूर्ति का निर्माण होना चाहिए। 2. दाग की परीक्षा-(1) निर्मल कांजी के साथ बेलवृक्ष के फल की छाल पीसकर प्रतिमा के पत्थर अथवा लड़की पर लेप करने से दाग़ प्रगट हो जाता है। (2) पत्थर अथवा लकड़ी पर उपर्युक्त लेप करने से अथवा स्वाभाविक आदि मधं के रंग का दाग़ हो तो उसके भीतर खद्योत (जुगुनु) जैसा जानना । भस्म जैसा दाग़ हो, रेत गड़ जैसा दाग़ हो तो भीतर लाल मेंढ़क है । आकाश वर्ण दाग़ हो तो पानी, कबूतर के वर्ण का मंडल हो तो छिपकली, मंजीठ जैसा दाग़ हो तो मेंढक, लाल वर्ण का दाग़ हो तो गिरगिट, पीले वर्ण का दाग़ हो तो गोह, कपिल वर्ण का दाग़ हो तो चहा, काले वर्ण का दाग़ हो तो सूर्य और चित्र वर्ण का दाग़ हो तो बिच्छू है; ऐसा समझना चाहिए। इस प्रकार के दाग़ वाला पत्थर अथवा लकड़ी हो तो संतान, लक्ष्मी प्राण और राज्य का विनाश कारक है । (3) पाषाण अथवा लकड़ी में कीला, छिद्र, पोलापन, जीवों के जाले सांध (जोड़) मंडलाकार रेखा अथवा कीचड़ हो तो बड़ा दोष माना है। (4) यदि प्रतिमा के पाषाण अथवा काष्ठ में किसी भी प्रकार की रेखा दाग़ हो और वह अपने मूल वस्तु के रंग जैसा ही हो ती दोष नहीं है । यदि मूल वस्तु के रंग से अन्य वर्ण की हो तो बहुत दोष वाली समझना ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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