________________
184
X
आरती उतारत ही आरत सब टर जाएं। पाप ढिग धरै पाप पंक्ति को हरतु है ।। X X
X X xxx
वीतराग देव जु की कीजै दीपक सों चित्त लाय ।
दीपत प्रताप शिवगामी यो भनतु है ॥1॥ (3) इसी पंथ के संस्थापक पं० बनारसी दास कृत धूप पूजा का दोहा---
पावक दहे सुगंध कू, धूप कहावत सोय ।
खेवत धूप जिनेश के अष्टकर्म क्षय होय ॥1॥ (4) जिनवाणी संग्रह में शान्तिनाथ भगवान की पूजा में सचित फलों का वर्णन
नारिंगी-पंगी कदली-नर-नारि केल सोअहं यजे वर फलैर्वर सिद्धचक्र। (5) जिनवाणी संग्रह में शान्तिनाथ की पूजा में नवेद्य पूजा वर्णन
पकवान नवीने पावन कीने षटरस भीने सुखदाई।
मनमोदनहारे छुदा निवारे आगे धरै गुण गाई॥1॥ इस प्रकार दिगम्बर तेरहपंथ आम्नाय ने सचित फल-फूल आदि का जिन प्रतिमा में पूजन का निषेध करते हुए भी पूजा के पाठों में इन सचित द्रव्यों का स्पष्ट उल्लेख कर जिनप्रतिमा पूजन की प्राचीन पद्धति का समर्थन ही किया है। फिर भी सचित द्रव्यों से पूजा में पाप मानते है ।
(6) तीर्थंकर की सचित पुष्पों से पूजा के कुछ अन्य प्रमाण
(अ) दिगम्बरों की दर्शन कथा में पुष्प द्वारा तीर्थंकर की पूजा केलिए जाते हुएरास्ते में हाथी के पांव के नीचे दबकर मर जाने से मेंढक के मन में पूजा की भावना से स्वर्ग गमन का वर्णन है।
(आ) दिगम्बर वृहत्कथा कोष में लिखा है तेर नाम की नगरी में ग्वाले के पुत्र ने दिगम्बर मुनि के आदेश से साक्षात् केवली तीर्थंकर के चरणों पर सचित कमल चढ़ा कर पूजा की।
" (इ) इसी प्रकार दिगम्बरों की मुकटसप्तमि की कथा में श्रावण शुक्ला सप्तमि के दिन श्री ऋषभदेव, अथवा श्री मुनिसुव्रत स्वामी अथवा श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमा की पूजा मुकुट को पुष्पों से सजाकर पहना कर तथा पुष्पमाला को गले में पहनाकर पूजा करें।
श्री जिनेन्द्रदेव की पूजा विधि में पार हिंसा आदि कहने वालों को दिगम्बर श्री योगेन्द्र कृत श्रावकाचारसार संग्रह, आराधनाकथाकोष आदि ग्रंथों को अवश्य देखना चाहिए। उनमें लिखा है
श्री जिनाभिषेक में पुष्पादि से पूजा करने में, तीर्थयाता, जिन बिम्ब प्रतिष्ठा आदि कार्यों में जो आरम्भ समारम्भ कहता हैं, सावध योग कहता है, हिंसारम्भ कथन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org