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'दिगम्बर पंथ के दो मुनि अकलंक-निष्कलंक जैन मुनि का वेश छोड़कर बौद्ध दर्शन का
अभ्यास करने के लिए भाव से जैन साधु के गुणों सहित रहे । तथा महोपाध्याय यशो. विजथ जी महाराज काशी में अन्य दर्शनी पण्डितों से अन्य जैनेतर दर्शनों का अभ्यास करने के लिए जैन साधु वेश का त्यागकर बटुक के वेश में रहे। क्योंकि उस समय बौद्ध तथा ब्राह्मण लोग जनों को विद्याभ्यास नहीं कराते थे । इसलिए भाव से जैन साधु होते हुए भी उनको जैन साधु वेश को त्याग करने के लिए बाध्य होना पड़ा । तो क्या साधु वेश के त्यागी भाव साधु को आप साधु समझकर वन्दना करेंगे? आप कदापि नहीं करेंगे। कहेंगे कि मुनि वेश बिना भाव साधु को वन्दना करने की शास्त्राज्ञा नहीं है। 'भरत चक्रवर्ती आदि महापुरुषों के गृहस्य वेश में केवलज्ञान पा लेने के बाद भी जब तक उन्होंने मुनि वेश धारण नहीं किया तब तक उनको इन्द्र ने भी वन्दन नहीं किया।
3. वेश से भी साधु नहीं भाव से भी साधु नहीं(अ) एक साधु का देहान्त हो गया। मृत्यु से पहले यदि उसकी आत्मा में साधु के गुण थे तो जब वह मर गया तब उसकी आत्मा देवलोक में जाकर देवता के शरीर में उत्पन्न हुई। देवता को कोई व्रत नहीं होता (देशव्रत तया सर्वव्रत दोनों का अभाव है)। इसलिए उसकी आत्मा में इस समय साधु के गुणों का सर्वथा अभाव है यानी इस समय उसकी आत्मा में न तो साधु के गुण हैं न शरीर पर साधु का वेश है (भरतक्षेत्र में इस पांचवें आरे में साधु को मुक्ति नहीं है) तया उस साधु के शव में भी साधु के गुणों का अभाव हो है ऐसा होने पर भी मूर्ति विरोधी उनके भगत लोग उस मुर्दे का बड़ी-बड़ी दूर से आकर उसको भक्ति से नतमस्तक होते हैं। उस मुर्दे की अर्थी को खूब सजाते हैं। उस अर्थी के सामने जय जय नन्दा, जय-जय भद्दा के गगन भेदी नारे लगाकर अपनी श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। उस मुर्दे का अग्नि संस्कार करने में हजारों, लाखों रुपये को स्वाहा करते हैं। बड़े सम्मान के साथ चन्दन की चिता में जलाते हैं। उस मुर्दे पर फूल भी बरसाते हैं। उस मुर्दे को जो भी आदर सत्कार दिया गया, यह सब क्या है ? महा अहिंसक होने का दम भरने वालों की इस समय अहिंसा कहां नौ. दो ग्यारह हो गई ? बाहर से आने वाले इस मुर्दे के दर्शनार्थी, अर्थी के साथ जानेवाले भक्तजन, उस मुर्दे को कच्चे सचित पानी से स्नान कराने, भक्तों के पहुचने की प्रतीक्षा में उस मुर्दे को कई-कई दिनों तक बर्फ में रखने और अन्त में उस मुर्दे को चिता में फूंकने से होने वाली वर्णनातीत हिंसा करने वालों से पूछा जाय कि यह सब जो कुछ भी नाटक रचा गया है, इसे क्या समझकर रचा गया है ? क्या यह सब धर्म के नाम पर किया गया है अथवा क्या समझकर किया गया है ?
(आ) कोई शास्त्रज्ञान का ज्ञाता व्यक्ति जिसमें न तो साधु के गुण हैं और न साधु का वेश ही धारण किये हो अर्थात् भाव से साधु के गुण उसकी आत्मा में विद्यमान नहीं है और न ही उसके साधु का वेश है तो क्या आप उसको वन्दन करेंगे । आप कहेंगे कि कदापि नहीं । तो आप हो बतलाइए कि उस साधु के मुर्दे को जिस में न भाव साधु
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