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________________ 123 कर रिश्वत (लाँच) लेकर अन्याय करके बटोरता हो, झठी साक्षी देकर किसी निरपराधी को फांसी के तख्ते पर लटकाने में सहयोगी हो। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए हजारों-लाखों प्राणियों के प्राण संकट में पड़ते हों ऐसे घृणास्पद हिंसा-पूर्ण वृत्ति से धन कमाता हो । पैसे के ज़ोर से अन्याय, अनाचार आदि का सेवन करता हो, लुच्चों और गुण्डों का सरदार हो, मानव, समाज, देश का कैसा भी अहित करने वाला हो, ऐसा व्यक्ति समाज की दृष्टि में आज अपराधी नहीं माना जाता। आज का समाज ऐसे लोगों का सम्मान करता है, त्यागीवर्ग भी ऐसे धनवानों-पूंजीपतियों की वाह-वाह में, उनको सम्मान सत्कार देने में किसी से पीछे नहीं है । ऐसे लोग ही आज प्रायः देश के नेता तथा समाज के प्रधान बनाए जाते हैं । सच्चरित्र विद्वान, ईमानदार गरीब को आज समाज सत्कार नहीं देता। किन्तु उससे धर्म के नाम पर बेगार रूप में कार्य लेकर अथवा कार्य लेकर भी कम से कम पारिश्रमिक देकर निचोड़ने, शोषण करने की प्रायः इस धनप्रधान समाज में प्रवृत्ति पाई जाती है। ऐसा होने से भ्रष्टाचार, व्यभिचार, दुराचार, कालाबाजार आदि से सारा समाज, देश और विश्व दुःखों की चक्की में पिस रहा है। रात को खालेने से, भूख से अधिक खालेने से, मांस-मदिरा, तम्बाकू, प्याज, लहसन आदि अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करने वाला व्यक्ति प्रकृति के प्रतिकूल आचरण करके रोगादि द्वारा अपने आप बदला चुका देता है । अर्थात् प्रकृति उससे अपने आप बदला ले लेती है। परन्तु अन्यायी, दुराचारी, विश्वासघाती, काले बाजार से धन कमाकर करोड़ों गरीब मानवों की पसीने की कमायी से कमाये हुए धन को लूटनेवाला, खाने-पीने अथवा औषधादि वस्तुओं में मिलावट कर करोड़ों-करोड़ों मानवों के स्वास्थ्य और जीवन से खिलवाड़ करने वाला, रिश्वत-खोरी आदि से धन वटोर कर पूंजीपति बनने वाला, आलीशान महलों और बंगलों में रहकर समाज' देश का सबसे बड़ा अहितकारी होने पर भी उसे अपराधी नही माना जाता । जो कि वास्तव में महापराधी हैं। इसी प्रकार ऐसा गहस्थ भी कम गुनाहगार नहीं है जो धन सम्पत्ति को बटोर कर तथा स्त्री परिवार आदि से सम्पन्न होकर उसकी रक्षा करने में असमर्थ हो, सर्वथा अयोग्य हो । जो डरपोक-कायर होते हुए भी संग्रह करता है वह चोर को, अत्याचारी को निमंत्रण देता है कि बेखटके सब कुछ लूट ले जाबे उसका प्रतिकार करने वाला नहीं है। ऐसे कायर-डरपोक, निपुंसक, हिजड़े को कोई अधिकार नहीं कि वह परिवार, धन आदि का संचय करे। स्त्री धन सम्पत्ति वीरपुरुष के चरण चूमते हैं। वीर पुरुष ही उन्हें पाने का अधिकारी है । किसी मर्द को नामर्द कहकर देखिये तो वह आप को कैसा मज़ा चखाता है। मर्द के लिए नामर्द से बढ़कर कोई गाली और अपमान सूचक शब्द नहीं है। कायरता के कारण ही उस ब्राह्मण-देवता ने धर्म, अहिंसा, त्याग समाज को कलंकित किया और अपने तथा अपने परिवार की इज्जत आवरू से हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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