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________________ 122 है उसकी इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। (2) दूसरा कहता है 'जाको राखे. साइयाँ मार न सक्के कोय।' अर्थात् जिसकी प्रभु रक्षा करते हैं उसे कोई मार नहीं सकता। तुम पर भगवान की बड़ी कृपा हुई कि तुम बाल-बाल बच गए हो। यदि हत्यारा तुम्हारी हत्या कर जाता तो फिर क्या होता? धन्यवाद करो उस भगवान का (3) तीसरा बोला-धन्य है तुम्हें ब्राह्मण देवता ! अपनी आंखों के सामने सब कुछ लुटा दिया । इज्जत आबरू, मान, मर्यादा, प्रतिष्ठा, धन दौलत सब कुछ को तुमने नश्वर जानकर त्याग के नाम पर न्यौछावर कर दिया । (4) चौथा बोला-ब्राह्मण देवता! तुम ने सच्चे अहिंसक होने का परिचय दिया है। सब अत्याचार वरदाश्त किये पर अत्याचारी को भी क्षमा कर दिया, उस पर हाथ नहीं उठावा । आदर्श अहिंसा का पालन करने वाले देवता तुम्हें धन्य है। तुम्हारा नाम युग-युगान्तरों तक लोगों को स्मरण रहेगा। कहने का आशय यह है कि जितने मुंह उतनी बातें । जितनी जिसकी बुद्धि वैसी बात। धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को लौट गए। पर किसी ने उसके दुःख पर चार आँसू नहीं बहाए। न ही लुटेरे-हत्यारे-व्यभिचारी डाकू का पीछा किया और मारे डर के पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने भी नहीं गए। ब्राह्मण देवता को भी लाचार होकर यह कड़वा चूंट पीजाना पड़ा । बेचारा कुछ कर न सका। ____ आओ जरा इस घटना पर विचार करें। अब आप ही बतलाए कि क्या यह ब्राह्मण सचमुच ईश्वर का सच्चा भक्त, आदर्श त्यागी, आदर्श अहिंसक, आदर्श समताशाली अथवा आदर्श सहनशील है ? अथवा कायर, डरपोक, ईश्वर के नाम को कलं-- कित करने वाला अथवा नामर्द ? ___क्या यह सचमुच प्रभुभक्त कहलाने योग्य है अथवा प्रभुभक्ति की निन्दा करने कराने वाला, कायरता की ओट में अहिंसा और त्याग को बदनाम करने वाला, नपुंसक नार्मद अथवा धर्म, समाज, देश को कलंकित करने वाला कापुरुष ? ___यदि जैनों के गृहस्थ योग्य उपर्य क्त बारह व्रतों को ठीक-ठीक समझा होता। उसके रहस्य को परखा होता तो उसकी यह दयनीय दुर्दशा न होती । आज यदि कोई. जैनी रात्रीभोजन करता है, प्याज, लहसन खालेता है तो उसे पतित समझा जाता है । यदि कोई सिक्ख हुक्का अथवा सिगरेट-बीड़ी पी लेता है तो उसे धर्मच्युत समझा जाता है । यदि कोई मुसलमान सूअर का नाम भी मुख से बोलता है तो उसे काफिर कहकर पुकारा जाता है और पाँचनमाजी मुसलमान कानों में अंगुलियाँ देकर मुंह फेर लेते हैं। यदि कोई हिन्दू गाय की तरफ दुर्भावना प्रगट करता है तो सारा समाज उसे असभ्य समझने लगता है। यदि कोई रात्रीभोजन न करता हो, यदि कोई अनन्तकाय वनस्पति. का त्यागी हो, यदि कोई बीड़ी-सिगरेट न पीता हो, यदि सूअर और गाय के प्रति अपनी-अपनी धर्ममान्यता के अनुसार आचरण करता हो, पर वह चाहे काला बाजार करके, खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट करके, किसी की हत्या करके कैसे भी पूंजीपति बना हो, अथवा दुराचारी चरित्र भ्रष्ट हो, न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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