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________________ 121 कंठस्थ भी थे । नगरवासी उसे ब्राह्मणदेवता के नाम से पुकारते थे। वह पत्नी, भरा'पूरा परिवार, धन-दौलत, चल-अचल सम्पत्ति आदि सब प्रकार से सम्पन्न था । पर था. कापुरुष, डरपोक और परिवार में कलहप्रिय। वह स्वयं तथा नगरवासी उसे परम अहिंसक मानते थे। यज्ञोपवीत, गायत्रीजाप, माथे पर तिलक, बगल में धर्मपुस्तक, "तुलसीपूजा, भागवत-रामायण-महाभारत आदि का नित्यपाठ ये सब उसके धर्मात्मा होने के चिह्न थे। एकदा हट्टा-कट्टा तगड़ा पठान डाकु उसके घर में घुस आया। मारे डर के ब्राह्मण देवता थर-थर काँपने लगा, पलंग के नीचे जाकर छिप गया। हाथ में माला लेकर राम-राम का मौनजाप करने लगा । बाल बच्चे, स्त्री, सारा परिवार इधर-उधर भागकर अपने आप केलिए सुरक्षित स्थान की खोज में बेताब हो गये । लुटेरे डाकू ने बच्चों को मारपीटकर उनके मुंह पर कपड़ा ठूसकर एकतरफ बांध दिया। उसकी स्त्री को बांध उससे बलात्कार कर और सारा माल धन लुटकर वहां से चम्पत हो गया । पर मारे डर के परिवार के किसी भी व्यक्ति ने चं तक नहीं की । सबकी जबान बन्द थी। ब्राह्मणदेवता भी घिग्घी बांधे राम भरोसे अत्याचारी के सब अत्याचारों को, लूट-खसूट को देख-देखकर मन-ही-मन अपने भगवान का आह्वान कर रहे थे कि वह शीघ्र आकर मेरे जैसे उपासक भक्त की रक्षा करे और इस लुटेरे डाकू की 'ऐसी खबर ले कि इसे छठी का दूध याद आ जावे। पर ऐसे अड़े समय में भी भगवान ने भक्त की सुध न ली। बेचारा ब्राह्मण देवता असहाय अवस्था में ही बुड़बुड़ाता रह गया । ___ कहा है कि "हिम्मते मरदां मदवे खुदा" अर्थात् ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जो स्वयं पुरुषार्थी-वीर-निर्भीक होता है। कायर, डरपोक, असहाय बेमौत मारा जाता है। अत्याचारी, लुटेरे पठान डाकू के भाग निकलने के बाद ब्राह्मण देवता फ्लंग के नीचे से बाहर निकला । स्त्री और बच्चों तथा परिवार के अन्य लोगों के रोने चिल्लाने से दयनीय अवस्था को देखकर उसकी आंखों से भी आंसू छलक-छलक कर गिरने लगे। सब को दमदिलासा देकर ब्राह्मण देवता मुहल्ले में आकर चिल्लाने “लगा। हाय रे ! चोर मेरा धन-दौलत-इज्जत-आबरू सब कुछ लूट ले गया। बचाओ रे बचाओ ! ब्राह्मण देवता का शोरोगुल सुनकर अड़ोस-पड़ोस, गली-मुहल्ले के लोग जमा होने लगे । लुटजाने की खबर सारे नगर में आग की तरह फैल गई । नगर के कोने कोने से लोगों के झुंड के झुंड आकर जमा हो गये । पर अब क्या होता है-"पीछे "पछताये क्या होत जब चिड़ियां चुग गई खेत ।" ब्राह्मण देवता को सांत्वना देने केलिए कोई कुछ कहता है कोई कुछ (1) एक बोला कि भक्त की भगवान समय समय पर ‘परीक्षा लेते हैं । वे देखते हैं कि हमारा भक्त हमारे प्रति कितनी दृढ़ भक्ति रखता है। -सच पूछो तो यह तुम्हारी धर्मनिष्ठा की ही परीक्षा हुई है । इतनी बड़ी मुसीबत आने * पर भी तुमने राम नाम को नही छोड़ा। जो कुछ करता है भगवान अच्छा ही करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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