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________________ 87 2-पुष्प, स्वस्तिक आदि किसी भी एक प्रकार की पूजा के साथ चैत्यवन्दन स्तवन करना, यह द्रव्य और भाव से दो प्रकार की पजा । 3-पुष्प, नैवेद्य, स्तवन । अथवा पुष्प, अक्षत, स्तुति से त्रिविध पुजा । 4-विघ्नोपशमिनी (विघ्ननिवारणी), अभ्युदय प्रदायिनी (उन्नति दायिनी), निर्वाणदायिनी (मुक्तिदायिनी) यह भी त्रिविध पूजा है। 5-समंतभद्रा, सर्वमंगला, सर्वसिद्धि यह भी त्रिविध पूजा है । 6-तामसी, राजसी, सात्विकी के भेद से भी त्रिविधा पूजा होती है। 7-पुष्प, नैवेद्य, स्तुति और प्रतिपत्ति (प्रभू-आज्ञा-पालन), यह चतुर्विध पूजा। 8-गंध, धूप, अक्षत, पुष्प, दीपक, यह पंचोपचारी पूजा है। 9-गंध, धूप, अक्षत्, पुष्प, दीप, नैवेद्य, फल, जल यह अष्टप्रकारी पुजा है। 10-विलेपन, वस्त्रयुगल, पुष्पारोहण, माल्यारोहण, गंधारोहण, चूर्णारोहण, वर्षारोहण, वस्त्रारोहण, माभरणारोहण, पगृह, पुष्पप्रकर, अष्टमगलालेखन, धूप और अष्टोत्तरशत काध्य द्वारा स्तुति यह चौदह प्रकार की आगमोवत प्राचीन पुजा है। 11-अष्टोत्तर-शताभिषेक, अष्टोत्री स्नात्र, शाँतिस्नात्र, अर्हदभिषेक आदि और भी अनेक प जाओं का विधान है। 12-स्नात्रपूजा-तीर्थंकर के च्यवन और जन्म कल्याणक की पुजा । (4) पूजा के अन्य भेद और उसके अधिकारी। पुला देवस्स दुहा विन्नेया दव्य भाव भेएणौं । इयरेयजुत्ता वि हु तत्तण पहाण-गुण-भावा ॥॥ . पढमा गिहिणो सो विहु तहा तहा भाव भेयो तिविहा । काय-वय-मण-विसुद्धि-संभुमो गरण परिमेया ॥2॥ सब्व-गुणा हिग-विसयो नियमुत्तम-वत्थु-दाण परिओ यत । कायकिरिय-पहाणा समंतभद्दा पढमं पुमा ।।3।। बीया उ सव्वमंगल नामो वाय किरिया पहाणे सा । पुवुत्त विसय वत्थुसु, ओचित्ताणयण भेएण ॥4॥ तइमा परतत्तगया सव्वुत्तमवत्थ माणसनिमोगा। सुद्धमण-जोग सारा विन्नया सम्वसिद्धि फला ।।5।। अर्थात-1-जिनेश्वरदेव की पजा द्रव्य और भाव द्वारा दो प्रकार की है। यद्यपि द्रव्य-भाव अन्योन्य युक्त (एक दुसरे से सम्बन्धित) है तो भी प्रधान गौण भाव से दोनों भिन्न हैं । प्रथम पूजा में द्रव्य की प्रधानता है दूसरी पूजा में द्रव्य गौण बन जाता है परन्तु भाव प्रधान हो जाता है। इसलिये दोनों पूजाएँ जुदा मानी हैं। "प्रथम द्रव्य पूजा गृहस्थ के योग्य है। 2-वह भी तथा प्रकार के भाव भेदों से तीन प्रकार की है। कायिक, बाचिक और मानसिक विशुद्ध संभूत उपकरणों के भेद से । इसमें काय-प्रवृत्ति-प्रधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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