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प्रथम पजा के अधिकारी सर्वाधिक होते हैं । इस पूजा में अपनी उत्तम वस्तु देकर अर्पण करके अपनी संतुष्टि करने की भावना मुख्य होती है। इस पूजा में शारीरिक प्रवृत्ति की प्रधानता होती है। इस पूजा का नाम समंतभद्रा है । दूसरी पजा का नाम सर्वमंगला है । यह पूजा वचन क्रिया प्रधान होती है। प्रथम पूजा में अर्पण की हुई वस्तुओं के औचित्य का विचार कर दूसरों के द्वारा मंगवाकर उन का पूजा में प्रयोग करना । इस भेद से पहली से यह पूजा जुदी है । तीसरी द्रव्य प्रजा का नाम सर्वसिद्धि फला हैं। इस पूजा में उत्तम तत्त्व का चिंतन किया जाता है । इस में पूजा योग्य सर्वोत्तम वस्तु की गवेषणा में मन को जोड़ा जाता हैं। इस पूजा में शुद्ध मनोयोग की प्रधानता होती है । तीसरी मानसिक पूजा सब प्रकार के सिद्धिफल को देनेवाली होती है । इस पूजा में कायिक और वाचिक प्रवृत्तियां बन्द हो जाती हैं और मानसिक शुभ और शुद्ध भावनाओं की प्रधानता होती हैं। (5) श्रावकाचार में लिखा है कि
प्रभाते प्रथमं वास-पूजा कार्या विचक्षणः । मध्यान्हे कुसुमैः पूजा संध्याय धूप दीप युक् ॥1॥ वामांगे धूपदाहश्च, नैवेद्य कुर्यात सन्मुख ।
अर्हतो दक्षिण भागे दीपस्य च निवेशनम् ॥2॥ विचक्षणों को दिन में तीन समय पूजा करनी चाहिए। प्रभात-प्रातः काल के समय वासक्षेप से, दोपहर को पुष्पों से, संध्या समय दीपक-धूप से । अरिहंत भगवान की बाई तरफ धूपदानी, सन्मुख नैवेद्य, और दाहिनी तरफ दीपक रखें।
(6) पूजा में प्रायः पुष्पों से पूजा का अवश्य विधान हैं, उन फूलों के लिए शास्त्रकार फरमाते हैं कि :
प्राचार्य रविषेण कृत पद्मचरित्र में पुष्प पूजा समोदर्भ जलोद्भूतः पप्पयों जिनमर्चति । विमान पुष्पकं प्राप्य स क्रीडति यथोप्सितम ।।159।।
अर्थात-जल में उत्पन्न होने वाले और प थ्वी पर उत्पन्न होने वाले सुगन्धित ताजे पुष्पों से जो जिनेश्वर प्रभु की पूजा करता है । वह पुष्पक देवविमान प्राप्तकर यथेच्छ क्रीड़ा करता है। (7) सब तरह की पूजाएँ मुख्य रूप से तीन प्रकार से होती है--
अंग-अग्ग-भाव-मेया, पुप्फाहार-थईहिं पय-तिगं । पंचोक्यारा अट्ठोक्यारा सम्वोवयारा वा ॥10॥
अर्थात्-1.अंग पूजा (प्रतिमा के शरीर पर चढ़ाने वाले द्रव्यों से पूजा) पुष्पों से 2 अग्र पजा (प्रतिमा के आगे रखने वाले द्रव्यों से प जा) नैवेद्य से 3. भाव पूजा प्रभु के सम्मुख मात्र चैत्यवन्दन, स्तुतिः स्तोत्रों, नृत्य आदि से पूजा करना । इस तीन प्रकार की पूजा में से अंग और अग्नपूजा का द्रव्य पूजा में
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