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जैन चित्रजगत के भीष्मपितामह प.पू.आचार्यदेव श्रीमद् विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी महाराजा का कल्पना विश्व
(जैन ज्योतिर्धर चित्र आल्बम से साभार उद्धृत)
1) अतिमुक्तक (अइमुत्ता)
(पूर्व संस्कार)
(१) छ: साल के अतिमुक्तक गौतम स्वामी को मोदक बेहराते है। (२) बाद में साथ जाते हैं ज्यादा बोझ देखकर पात्रा पकडने को माँगा गौ० दीक्षा लो तब दीया जाय । (३) दीक्षा ली स्थंडिल गये वहाँ बरसात का बहता पानी देख मिट्टी की पाल बांध कर छोटा पात्रा तिराते बडी खुशीसे नाचने कूदने लगे साधुओं ने ऐसा न करने को कहा, साधु जाकर भग० से कहते है अप्काय का हिंसक जीवरक्षा कैसे करेगा? भग० इसका ऐसा तिरस्कार मत करो वह तुमसे पहले केवली होगा। यह सुनकर उन्होंने क्षमा माँगी । (४) एक बार स्थंडिल से लौटते वक्त बालकों को पानीमें पत्तों की नाव बनाकर तैराते खेलते देखा अपनी पहले की जलक्रीडा याद आनेसे । (५) समवसरण में इरियावहिय (पणग दग मट्टी०) बोलते तीव्र पश्चात्ताप होनेसे ९ वे वर्ष में केवल ज्ञान और मुक्ति प्राप्त की। 2) इलाचीकुमार (स्वदोषदर्शन) (१) ब्राह्मण ब्राह्मणीने दीक्षा ली । ब्राह्मणी शरीर कपडे की बहुत साफसफाई करते रहने से और जातिमद करने पर भी । (२) दोनों ने संयम का फल स्वर्ग सुख पाया । (३) तीसरे भवमें इलाचीकुमार और नर्तकी बने, नाचती नर्तकी को देख कुमार मोहित हुआ माँबापके बहुत समजाने पर भी उसके साथ चला और नाचना सीखा। (४) एक नगरमें राजारानी और बहत लोगोके आगे पैसे के लिये वह न मीले तब तक नाचते हैं वह नाचते हुओ गीर पडे मर जाय तो मुझे मिले । नाचते इलाची कुमारनें दान देने वाली स्त्री के आगे खडे हुए शांत मुनि को देख अपनी स्त्री लंपटता का धिक्कार और मुनिको अविकारिता की प्रसंशा करते केवलज्ञान पाया, देशना दी, पूर्वभव सुनकर नटीने अपने अनर्थ कारक रुपको धिक्कारते हुए और राजारानीने भोगलालसा को धिक्कारते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया।