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सव्वेसिं तेसिं - उन सब को पणओ - प्रणाम करता हूँ . तिविहेण - तीन प्रकार से (करना, कराना और अनुमोदना) तिदंड – तीन दंड (मन से पाप करना यह मन-दंड, वचन
से करना वचन-दंड, काय से करना काय-दंड) से विरयाणं - प्रतिज्ञापूर्वक विराम पा चुके हुएँ को
भावार्थ भरत, ऐरवत और महाविदेह क्षेत्रों में विद्यमान जो कोई साधु मन, वचन और काय से प्रतिज्ञा पूर्वक पापमय प्रवृत्ति करते नहीं, कराते नहीं तथा उस का अनुमोदन भी नहीं करते, उन्हें मेरा प्रणाम।
सूत्र - परिचय __ इस सूत्र के द्वारा सब साधुओं को वंदना की गई है। अत: इसे 'सव्वसाहू-वंदण' सूत्र रूप में भी माना जाता है। ___पंच परमेष्ठी में साधु का स्थान पाँचवां है। पाँचों परमेष्ठी आराध्य, पूज्य और श्रद्धेय हैं। साधु भगवंत की सेवाभक्ति से धर्माराधना में सतत जागृति रहती है। उनके चारित्र्य युक्त उपदेश से हमें धर्मनिष्ठ जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा प्राप्त होती है। ऐसे उपकारी मुनिराजों को इस सूत्र में नमस्कार किया गया है। ध्यान में लेने योग्य है कि इसमें साधु का मुख्य गुण यह बताया कि वे पापप्रवृत्ति से त्रिविध विविध विरत है यानी प्रतिज्ञाबद्ध निवृत्त हैं।
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