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सूत्र - परिचय
वीतराग जिनेश्वर भगवान की प्रतिमा साक्षात् जिनेश्वर जैसी हैं । वह वंदनीय है, इसी प्रकार उसका मंदिर भी वंदनीय है । वंदनादि द्वारा इन दोनों के आलंबन से मन को वीतराग बनने की दिशा में अग्रसर होने के लिए असीम बल प्राप्त होता है । इस छोटे से सूत्र द्वारा विश्व के जिनमंदिरों तथा प्रतिमास्वरूप जिनेश्वर भगवंतों को वंदन किया गया है ।
यह वंदन किस प्रकार करना ? तो समजों कि
हम अलोक में खड़े होकर सामने १४ राजलोक देख रहे हैं। उनमें नीचे से ऊपर तक मंदिर और चैत्य दृष्टिगोचर हो रहे हैं । यह मानसिक दर्शन की कल्पना है। यह करते हुए वंदन नमन करना चाहिए .....
१५. 'जावंत केवि साहूं' सूत्र
जावंत केवि साहू भरहेरवय-महाविदेहे अ, सव्वेसि तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड - विरयाणं ॥ १ ॥
शब्दार्थ
- जितने भी कोई
- साधु
जावंत केवि
साहू
भरहेरवय
महाविदेहे अ
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भरत व ऐरवत क्षेत्र में
- और महाविदेह क्षेत्र में ( हैं )
wi
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