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जावंति
चेइआई
उड्डू अ
अहे अ
तिरिअ- लोए अ
सव्वाइं
ताई वंदे
इह
संतो
तत्थ
संताई
१४. 'जावंति चेइआई' सूत्र
जावंति चेइआई,
उड्ड्रे अ, अहे अ, तिरिअ- लोए अ,
सव्वाई ताई वंदे,
इह संतो तत्थ संताई ॥ १ ॥
शब्दार्थ
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- जितने
Ges
- चैत्य ( जिनबिंब- जिनमंदिर)
――
और ऊर्ध्व लोक में
और अधोलोक में
और तिर्यंग्लोक में सब को
- उन्हें वंदन करता हूँ यहाँ
- स्थित ( मैं )
वहाँ
- विराजमान (चैत्यों को)
भावार्थ
-
-
-
ऊर्ध्व लोक, अधोलोक तथा मध्य लोक में जितने भी जिन मंदिर और जिनबिंब हैं, वहाँ विद्यमान उन सबको यहाँ स्थित मैं वंदन करता हूँ ।
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