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अरिहंताणं... नमुत्थुणं भगवंताणं..., नमुत्थुणं आइगराणं... । अथवा अरिहंताणं नमुत्थु, भगवंताणं नमुत्थु, आइगराणं नमुत्थु- इत्यादि।
'ललित विस्तारा' में अरिहंत
व जैनधर्म की विशेषताएँ इस सूत्र में अरिहंत भगवान् को प्रत्येक पद द्वारा विशेषण प्रदान कर केवल स्तुति ही नहीं की, परन्तु पदों में निहित गंभीर भावों में
परमात्मा का यथार्थ स्वरूप कैसा होता है, इतर दर्शनों के क्या क्या मत हैं, और उनमें तथ्यांश कितना है, जैनदर्शन की प्रमुख विशेषताएँ कौन कौन सी हैं, आमोत्थान के उपाय कौन-कौन से हैं.... इत्यादि विषयों का समावेश है। (देखें हिंदी ललितविस्तरा-विवेचन व गुजराती 'परमतेज')
ज्यां देवदंदुभी घोष गजवे घोषणा त्रणलोकमां त्रिभुवन तणा स्वामी तणी सौए सुणो शुभदेशना प्रतिबोध करता देव मानव ने वली तिर्यंचने एवा प्रभु अरिहंतने पंचाँग भावे हुं नमुं.
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