________________
सूत्र - परिचय इस सूत्र में अरिहंत भगवान् की उत्कृष्ट स्तुति है। स्तुतिका एक एक पद अरिहंत प्रभु की विशिष्टता सृचित करता है। ___ प्रथम शब्द के आधार पर यह सूत्र ‘नमुत्थुणं' सूत्र कहलाता है। प्रत्येक तीर्थंकर के (माता के) गर्भ में आने के समय प्रथम सौधर्म देवलोक का शक्रेन्द्र इस सूत्र के द्वारा भगवान् की स्तुति करता है। अत: इसे 'शक्रस्तव' भी कहते हैं। . ___इस सूत्र में 'नमो जिणाणं जिअभयाणं' पद तक भावजिनकी स्तुति की गई है। 'जे अ अइआ सिद्धा' गाथा में द्रव्यजिनों को नमस्कार है। भावजिन अर्थात् भावतीर्थंकर । भाष्य वचन है- 'भावजिणा समवसरणत्था' समवसरण में तीर्थं की स्थापना कर रहे हों, या देशना दे रहे हों, तब वे भावजिन हैं। इसका मतलब यह है कि उनके अतिरिक्त पृथ्वीतल पर जब विचरणकर रहें हों तब वे द्रव्यजिन कहलाते है । (उस अवस्था में भी वे भावअरिहंत जिन तो अवश्य हैं, किन्तु भावतीर्थंकर जिन नहीं, क्योंकि भावनिक्षेप यथानाम अर्थ की अपेक्षा रखता है।) ___ इस सूत्र में अंतिम गाथा 'जे अ..' को छोड़कर नौ संपदाएँ हैं। (संपदा = एक भाव को दर्शानवाला यानी बतानेवाला पद-समूह)। सूत्र के प्रारंभ में 'नमो-नमस्कार के साथ 'त्थु', अर्थात् 'हो', पद रखकर इससे उच्च (सामर्थ्ययोग के) नमस्कार की प्रार्थना की गई है। भगवान् का दर्शन करते समय दोनों हाथ जोड़कर इस पद को, बाद के प्रत्येक पद के साथ, पढ़कर सिर झुकाते हुए स्तुति की जा सकती है। जैसे कि नमुत्थुणं
७५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org