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________________ भोगजल से पृथक् उत्तम पुंडरिक कमल समान, स्वचक्रपरचक्र - महामारि आदि सात प्रकार के उपद्रव दूर करने में गंधहस्ति समान को ॥ ३ ॥ भव्य प्राणीरूप लोक में विशिष्ट तथाभव्यत्व आदि द्वारा उत्तम, रागादि उपद्रव से रक्षणीय विशिष्ट भव्य लोक में मोक्षमार्ग के योगक्षेम करने द्वारा नाथ, धर्मास्तिकाय आदि पंचास्तिकाय स्वरूप लोक को सम्यक् प्ररूपणा द्वारा हितकारी, निकटस्थ भव्य लोकों के हृदय में विद्यमान अज्ञान तथा मिथ्यात्व रूपी गाढ अंधकार को दूर करने में लोकप्रदीप चौद पूर्वधर लोक को उत्कृष्ट श्रुतप्रद्योत देने के कारण लोकप्रद्योत करने वालों को ॥ ४ ॥ 'अभय' यानी चितस्थैर्य को देनेवालों को, 'चक्षु' यानी धर्मरुचि - धर्म आकर्षण रूपी नेत्र का दान करनेवालों को 'मार्ग' यांनी अनुकूल क्षयोपशम स्वरूप सरलतात्मक मार्ग देनेवाले, 'शरण' यानी तत्वजिज्ञासा रूपी शरण देनेवालों को, 'बोधि' यानी मोक्षवृक्ष के मूलरूप बोधि का, (अर्थात् श्रुतधर्म का) लाभ देनेवालों को ॥ ५ ॥ 'धम्मदयाणं' चारित्र धर्म के दाताको, 'धम्मदेसयाणं' - घर के जलते मध्य जैसे संसार में रहनेवाले जीवों को ३५ गुणों से युक्त वाणी द्वारा आग को शान्त करनेवाली मेघतुल्य धर्म देशना देनेवालों को, 'धम्मनायगाणं' स्वयं उत्कृष्ट धर्म के साधक व उत्कृष्ट धर्मफल प्राप्त करनेवाले होने से धर्म के सच्चे नायक को, अश्व के समान जीवों को धर्ममार्ग में पालन Jain Education International ७३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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