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________________ अत: सूत्र परिचय यह सूत्र 'जगचिंतामणि' शब्द से आरंभ हुआ है, इसका नाम 'जगचिंतामणि' है। प्रातः प्रतिक्रमण में इस सूत्र का पहले पाठ होता है तथा इससे चैत्यवंदन होता है। इस कारण इसे प्रभात - चैत्यवंदन भी कहते हैं । जिनमंदिर, और जिनमूर्ति (प्रतिमा) को चैत्य कहते हैं । इस सूत्र द्वारा ऐसे चैत्यों को भावपूर्वक वंदना की गई है। प्रांत: उठ कर परमोपकारी भगवान् का नाम-स्मरण करने से व उनके गुणों की स्तुति करने से, एवं मन में उनका दर्शन करने से, हृदय शुभ और शुद्ध होता है । अन्तःकरण में एक दिव्य आनंद हिलोरा लेता है। प्रातः काल ही मन शुभ शुद्ध और आनंदित होने के कारण, सारा दिन उसका प्रभाव रहता है । दिवस शुभ भाव और शुभ प्रवृत्तियों में व्यतीत होता है। कहा जाता है कि इस सूत्र के प्रथम पद से 'अप्पडिहय सासण' तक के पद की पहली व दूसरी गाथा गणधर श्री गौतम स्वामीजी द्वारा अष्टापद जाने पर २४ तीर्थंकरों की स्तुति के निमित्त रची गई थी। तीसरी 'कम्मभूमिहि...' गाथा में विचरण करनेवाले उत्कृष्ट तथा वर्तमान १७० - २० 'तीर्थंकरों' नौ करोड़ तथा दो करोड़ केवलज्ञानियों, ९० अरब और २० अरब श्रमणों की स्तुति है । चौथी 'जयउ सामि...' गाथा में शत्रुंजय आदि पांच तीर्थों के मूलनायकों की जय बुलाई है। इसी में अवर (अन्य) 'विदेही' अर्थात् भूत, भविष्य, वर्तमान काल के चारों दिशाओं विदिशाओं में स्थापित जिनों (जिनबिंबों) को नमस्कार किया गया है। Jain Education International ६६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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