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अनन्त के साथ) तीर्थंकर भगवंत ! हे अप्रतिहत शासन वाले ! ( मेरे हृदय में) जयवन्त रहो ॥ १ ॥
१५ कर्मभूमियों में उत्कृष्टकाल में वज्रऋषभनाराच संहननवाले विचरते हुए जिनेश्वर भगवानों की अधिक से अधिक संख्या १७० होती है । (तब) सामान्य केवलियों कि संख्या अधिकाधिक ९ करोड़, व साधुओं की संख्या ९० अरब होती है। वर्तमानकाल में २० तीर्थंकर विचर रहे है । केवलज्ञानी मुनि दो करोड़, श्रमण २० अरब हैं । इन सब की प्रातः काल स्तुति की जाती है | ॥ २ ॥
हे स्वामिन्! आप विजयी हो विजयी हो। शत्रुंजय पर विराजमान हे ऋषभदेव ! गिरनार पर विराजमान हे नेमिजिन ! सांचोर के श्रृंगारस्वरूप हे वीरजिन ! भरुच में प्रतिष्ठित हे मुनिसुव्रतस्वामिन्! मथुरा में विराजमान दुःखपापनाशक हे पार्श्वनाथ भगवान्! आप की जय हो ।
इनके अतिरिक्त = अन्य, 'विदेही' देहमुक्त जो कोई स्थापना- जिन रूप तीर्थंकर परमात्मा भूत भविष्य किंवा वर्तमानकाल में चारों दिशाओं विदिशाओं में हो उन सबको में वंदन करता हूँ ॥ ३ ॥
तीन लोक में स्थित आठ करोड़, सत्तावन लाख दो सौ बयासी (८,५७,००,२८२) शाश्वत जिनमंदिरो को प्रणाम करता हूँ ॥ ४ ॥ त्रिलोक की १५ अरब, ४२ करोड़, ५८ लाख ३६ हजार और ८० शाश्वत प्रतिमाओं को नमन करता हूँ ।
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