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४. अरिहंत देव की वंदना, पूजा, गुणगाथा से शुभ भावनाएँ जागरित होती हैं, जीवन पवित्र बनता है।
५. मन प्रभु की स्तुति में जब लीन होता है, तब वह अशुभ भावों से बच जाता है एवं पुराने अशुभकर्म दूर होते हैं।
६. इतनी अवधि में कई पापप्रवृत्ति से जीव बचा रहता है। ७. कहा है, – 'चैत्यवंदनतः सम्यक् शुभो भावः प्रजायते । तस्मात् कर्मक्षयः सर्वं ततः कल्याणमश्नुते ॥'
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अर्थात् शुद्धभाव से किये सविधि चैत्यवंदन से शुभभाव जागते हैं । फलतः कर्मों का क्षय होता है; इससे समस्त कल्याण प्राप्त होता है । तात्पर्य, अंत में अक्षुण्ण मोक्ष - सुख की प्राप्ति होती है। हे जिनेश्वर भगवन्! आप की वंदना व स्तुति से मेरा जीवन निर्मल और निष्पाप बने ।
११. 'जगचिंतामणि' - चैत्यवंदन सूत्र (खमा० दे कर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? इच्छं')
( इतना बोलकर पढना, -)
जग - चिंतामणि ! जगनाह ! जग गुरु! जगरक्खण ! जगबंधव! जगसत्थवाह ! जगभाव-विअक्खण ! ॥ १ ॥ अट्ठावय- संठविअरूव ! कम्मट्ट विणासण !
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